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________________ ३१४ खण्डहरोंका वैभव समाजसे घृणा करते थे। पर उस समय यह परम्परा इतनी विकसित हो चुकी थी कि उसका विरोध करना बहुत कठिन था। पाशुपतोंको वेदबाहय घोषित करने पर शंकराचार्य जैसे विद्वान्को प्रच्छन्न बौद्ध होनेका अपयश भोगना पड़ा था। श्रीपुर-सिरपुर___ रायपुरसे सम्बलपुर जानेयाले मार्गपर कउवाझर नामक ग्राम पड़ता है। यहाँ से तेरहवें मीलपर सिरपुर अवस्थित है। घनघोर अटवीको पारकर जाना पड़ता है । महानदीके तीरपर बसा हुआ यह सिरपुर इतिहास और पुरातत्त्वकी दृष्टि से कई मूल्यवान् सामग्री प्रस्तुत करता है। महाकोसलके सांस्कृतिक इतिहासकी कड़ियोंको सुरक्षित रखनेवाले नगरोंमें सिरपुरका अपना स्वतन्त्र स्थान है । निर्माण, विकास और रक्षाका संगम स्थान सिरपुर आज उपेक्षित, अरक्षित दशामें दैनन्दिन विनाशकी ओर आगे बढ़ रहा है। यहाँकी भूमि मानो कलाकृतियाँ ही उगलती है। जहाँ कहीं भी खनन किया जाय मूर्तियाँ, कोरणीयुक्त पत्थर तुरन्त निकल पड़ेंगे। जितने वहाँ मन्दिर हैं, उतने आज उपासक भी नहीं हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम हैं जिसका आनन्द शायद ही कोई कलाकार ले सकते होंगे । तात्पर्य कि सिरपुर किसी समय भले ही श्रीपुर- 'लक्ष्मीपुर' रहा होंगा, पर आज तो यह संस्कृति प्रकृति और कलाका सुन्दर संगम स्थल है। ___ नगरमें प्रवेश करते ही एक उच्चस्थान पड़ता है, जिसमें खंडहरके लक्षण परिलक्षित होते हैं । इस खण्डहरमें प्रवेश करते समय मुझे थोड़ासा रक्त-दान भी करना पड़ा-वह इसलिए कि काँटोंके वृक्ष इतने सघन थे, कि विना भीतर-प्रवेश किये कोई भी वस्तु स्पष्ट दृष्टिगोचर नहीं होती थी। खण्डहरके ठीक मध्यभागमें भगवान् बुद्धदेवकी भव्य और विशाल प्रतिमा ज़मीनमें गड़ी हुई थी। कमरतक छः फुटकी होती Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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