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________________ मध्यप्रदेशका बौद्ध-पुरातत्त्व ३०३ ऐसा लगता है कि उसने सुनी हुई परम्पराको ही लिपिबद्ध कर दिया और वही आज हमारे लिए ऐतिहासिक प्रमाण हो गया । जहाँतक रसविद्याके विद्वान् व सौराष्ट्र के दैहिक निवासी होनेका प्रश्न है, मैं सहमत हूँ, जैनसाहित्य नागार्जुनको ढंकगिरिका निवासी, प्रमाणित करता है, जो सोमनाथके निकट न होते हुए भी सौराष्ट्र-देशमें तो है ही । सोमनाथके निकट लिखनेका तात्पर्य यह होना चाहिए कि उन दिनों उनकी ख्याति काफ़ी बढ़ी हुई थी, यहाँतक कि सोमनाथके नामसे सौराष्ट्रका बोध हो जाता था, इसलिए अलबेरुनीने भी वैसा ही लिख दिया । रसशास्त्रके आचार्य भी ढंकवाले नागार्जुन ही थे । अब प्रश्न रह जाता है दैहिक और ढंकके साम्यका । दैहिक या ऐसे ही नामका कोई ग्राम सोमनाथके निकट है या नहीं ? ढंक सोमनाथसे कितना दूर पड़ता है, इसके निर्णयपर ही आगे विचार किया जा सकता है । इन पंक्तियोंसे इतना तो सिद्ध ही है कि अलबेरूनी भी रसशास्त्री नागार्जुनको सौराष्ट्रका मानता है । जिस ग्रन्थकी चर्चा उसने की है, मेरी रायमें वह नागार्जुनकल्प ही होना चाहिए। ___ अलबेरुनीने जो समय दिया है वह नवम शतीका अन्त भाग पड़ता है। यही उनका भ्रम है । इस भ्रमका भी एक कारण मेरी समझमें आता है वह यह कि ८४ सिद्धोंमें नागार्जुनका भी नाम आता है, इसका समय अलबेरुनीके उल्लेखसे मिलता-जुलता है। नागार्जुनके नाम-साम्यके कारण ही अलबेरुनोसे यह भूल हो गई जान पड़ती है । सिद्धोंकी सूचीवाले नागार्जुन आयुर्वेदके ज्ञाता थे, यह अज्ञात विषय है। उपर्युक्त विवेचनसे सिद्ध है कि कोई एक नागार्जुन रसतंत्रके आचार्य हो गये हैं और उनका आयुर्वेद-जगत्में महान् दान भी है। सुश्रुतके टीकाकार डल्हणका मत है कि सुश्रुतके प्रसिद्धकर्ता नागार्जुन ही हैं । रसवृन्द और चक्रपाणि लिखते हैं कि अमुक पाठ नागार्जुनने कहे हैं। माधवके टीकाकार विजयरक्षितने नागार्जुन कृत आरोग्यमंजरीके कई उद्धरण Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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