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________________ ३०२ खण्डहरोंका वैभव कथा सुनकर आदेश किया कि नालेन्द्र विहारको चला जा, वहाँ जानेसे मृत्युसे बच जावेगा। नालेन्द्र अथवा नालिन्दा मगध देशमें बौद्धोंका एक बड़ा विहार तथा महाविद्यालय था । उसमें भर्ती होकर यह बरारी बालक अत्यंत विद्वान् और बौद्धशास्त्र-वेत्ता हो गया। इसके व्याख्यान सुनने को अनेक स्थानोंसे निमन्त्रण आये। उनमेंसे एक नाग-नागिनियोंका भी था । नागोंके देशमें तीन मास रहकर उसने एक धर्म-पुस्तक नागसहस्रिका नामकी रची और वहींपर उसको नागार्जुनकी उपाधि मिली, जिस नामसे अब वह प्रख्यात है। रामटेक पहाड़में अभीतक एक कन्दरा है जिसका नाम नागार्जुन ही रख लिया गया है।" उपर्युक्त पंक्तिमें वर्णित समस्त विचारोंसे मैं सहमत नहीं हूँ। इसपर स्वतन्त्र निबन्धकी ही आवश्यकता है; पर हाँ, इतना अवश्य कहना पड़ेगा कि नागार्जुनने अपनी प्रतिभासे विद्वद्जगत्को चमत्कृत किया है । ८४ सिद्धोंकी २ सूचियोंमें भी एक नागार्जुनका नाम है, पर वे कालकी दृष्टि से बहुत बाद पड़ते हैं। अलबेरुनी नागार्जुनके लिए इस प्रकार लिखता है "रसविद्याके नागार्जुन नामक एक ख्यातिप्राप्त आचार्य थे, जो सोमनाथ (सौराष्ट्र) के निकट दैहकमें रहते थे, वे रसविद्यामें प्रवीण थे, एक ग्रन्थ भी उनने इस विषयपर लिखा है । वे हमसे १०० वर्ष पूर्व हो गये हैं।" अलबेरुनीका उपर्युक्त उल्लेख कुछ अंशोंमें भ्रामक है। मुझे तो श्री हजारीप्रसाद द्विवेदी-'नाथ सम्प्रदाय' पृ० २६, अलबेरुनीने इन्हीं नागार्जुनको सिद्धनागार्जुन मान लिया है, जो स्पष्टतः उनका भ्रम है। दुर्गाशंकर के० शास्त्री--ऐतिहासिक संशोधन, पृ० ४६८ । Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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