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________________ २८४ खण्डहरोंका वैभव है । बायीं ओर चक्रेश्वरी देवीकी प्रतिमा भी खुदी है जो चतुर्मुखी है। चक्रेश्वरीके दायें ऊपरवाले हाथमें चक्र एवं नीचेवाला हाथ वरद मुद्रामें है, बाँया हाथ खंडित होने के कारण यह नहीं कहा जा सकता कि उसमें क्या था ? चक्रेश्वरीका वाहन स्त्रीमुखी ही है । इसमें भी बायीं ओर भक्त विराजमान है। उसके अतिरिक्त चारों मूर्तियाँ अष्टप्रातिहार्य युक्त हैं। चारोंके भी भामंडल बहुत सुन्दर बने हुए हैं। किसी किसीमें प्रभा भी साफ़ है । एवं बिन्दु पंक्तियाँ दिखलाई पड़ती हैं । इस प्रकारके प्रभामंडल अंतिम गुप्तोंके समयमें बना करते थे । यद्यपि प्रस्तुत चतुर्भुजा मूर्ति प्राचीन तो नहीं जान पड़ती, परन्तु लगता ऐसा है कि कलाकारने किसी प्राचीन जैन मूर्तिका अनुकरण किया है। मूर्ति के चारों ओरके निम्न भागमें ग्राह बने हुए हैं। मध्यमें अर्द्ध चक्राकार धर्मचक्रके समान कुछ रेखाओंको लिये हुए है। पार्श्वदोंके खड़े रहनेके कमलपुष्प सभी ओर एकसे हैं । चारों ओर चार स्तम्भ भी बने हैं, जिनके सहारे पार्श्वद टिके हुए हैं । चौमुखोंका ऊपरी भाग शिखरका है, जिसको पाँच भागोंमें विभाजित किया जा सकता है। प्रथम भागको घेरकर चारों ओर पंक्तियोंके मध्य भागमें ४, ४, इस प्रकार २० पद्मासनस्थ प्रतिमाएँ दिखलाई पड़ती हैं, तदुपरि आमलक है । यद्यपि प्रस्तुत अवशेष पूर्णतः अखंडित नहीं, क्योंकि कुछ एक स्थान तो स्वाभाविक रूपसे पृथ्वीके गर्भ में रहने के कारण नष्ट हो गये हैं । एवं कुछ एक छैनीके शिकार भी बन गये हैं। प्रश्न यह उपस्थित होता है कि यह चौमुखी प्रतिमा किसी स्वतन्त्र मन्दिरमेंकी है या बाह्य भाग की ? मेरे विनम्र मतानुसार तो उपर्युक्त अवशेष किसी मानस्तम्भके ऊपरका हिस्सा लगता है, कारण कि दिगम्बर जैन संप्रदायमें जैन मन्दिरके अग्रभागमें एवं विशेषतः तीर्थ स्थानोंमें मानस्तम्भ निर्माण करवानेको प्रथा, मध्य कालमें विशेष रूपसे रही है। यदि वह मानस्तम्भका ऊपरके भागका न होता तो, शिखरों एवं आमलक बनानेकी आवश्यकता न पड़ती । ऊपरके भागमें मूर्तियाँ इसलिए बनाई जाती थी कि शूद्र दूरसे दर्शन कर सकें। यह कल्पना Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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