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________________ २७६ खण्डहरोंका वैभव प्रतिमा अवस्थित है। इसका पेट आवश्यकतासे अधिक फूला हुआ है। गलेमें आभूषण, कटिप्रदेशमें संकल एवं बाएँ हाथमें सर्प दिखलाई पड़ते हैं। मस्तकका पूर्ण भाग तथा दाएँ हाथ और पैरका भाग खंडित है । यह मूर्ति निःसन्देह कुबेरको ही होनी चाहिए । कारण कि कुबेरकी इस प्रकारकी प्रतिमाएँ अन्य जैन मूर्तियोंमें दिखाई पड़ती हैं। मूल नेमिनाथ भगवान्की प्रतिमामें दोनों स्कन्धप्रदेशोंके निकटवर्ती भागमें आकाशमें उमड़ते हुए गन्धर्व पुष्पमाला लिये उठे हुए बतलाये गये हैं। तदुपरि दोनों ओर अन्य मूर्तियों के अनुसार हाथी खड़े हुए हैं, जो मध्यवर्ती छत्रको थामे हुए होंगे। छत्रका भाग खंडित है, केवल दंड दिखलाई पड़ता है। दोनों हाथियों के पीछे करीब ६, ६ इंचकी खड्गासनमें जिनप्रतिमा खुदी हुई है । दायीं ओर तो किसी तीर्थकरकी मूर्ति लगती है, परन्तु इस प्रकारकी बायीं ओर जो मूर्ति है, वह आकृतिमें कुछ अधिक लम्बी है। हाथ घुटनेतक लगे हैं । प्रतिमाके शरीरके उभय भागमें दो रेखाएँ एवं हाथोंमें भी कुछ रेखाएँ दिखलाई पड़ती हैं । जहाँतक मेरा अनुमान है, यह मूर्ति बाहुबली' स्वामीकी ही होनी चाहिए । कारण कि दिगम्बर जैन सम्प्रदायमें इसका स्थान बहुत ऊँचा माना गया है। दूसरा यह भी कारण दिखलाई पड़ता है, कि उपर्युक्त मूर्ति तीर्थकरकी तो हो ही नहीं सकती, कारण २४ ही के हिसाबसे भी वह अलग पड़ जाती है। जैसे कि नेमिनाथ भगवान्को छोड़कर अतिरिक्त २३ जिन-मूर्तियाँ और खुदी हैं। हाथी और छत्रके ऊपरके भागमें पंक्तियोंमें पद्मासनस्थ जैन-मूर्तियाँ हैं। छत्रके उभय ओर ३, ३ और ऊपरकी दो पंक्तियाँ ८, ८ मूल प्रतिमाके मस्तकके पश्चात् महाकोसलमें भी दर्जनों ऐसी मूर्तियाँ मिली हैं, जिनमें गोम्मट स्वामीका अंकन पाया जाता है । उन दिनों यात्राकी कठिनाइयों के कारण भक्तगण अपनी भक्ति के निमित्त किसी भी तीर्थकरकी प्रतिमाके परिकर में बाहुबली स्वामीका प्रतीक खुदवा लेते होंगे। Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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