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________________ २४० खण्डहरोंका वैभव कलाकारने अपनी चिर साधित छैनी द्वारा, कल्पनाको साकार रूप देकर किया है, वह अनुपम है । विशेषतः बच्चोंकी मुख-मुद्रापर जो भाव प्रदर्शित हैं, उनको व्यक्त करना कमसे कम मेरे लिए तो संभव नहीं है । एक ऐसा भी अवशेष है, जिसमें बताया गया है कि गौ खड़ी हुई अपने बछड़ेकी पीठको स्नेहवश चाट रही है। बच्चा पयःपान कर रहा है । गौके मुखपर वात्सल्य रस झलक रहा है । एक शिल्पमें दो स्त्रियाँ मथानीसे विलोड़न कर रही हैं। बालक अपनी भोली-भाली मुख मुद्रा लिये मक्खनके लिए याचना कर रहा है । कल्पना कर सकते हैं कि चित्रमें कृष्णकी बाललीलाके भाव हैं। इस मण्डपको सामग्री साधारण प्रेक्षकोंको तो संभवतः संतुष्ट न कर सके, परन्तु पत्थरोंकी दुनिया में विचरण करनेवाले कोमल हृदयके कलाकारोंको आश्चर्यान्वित किये विना नहीं रहती। उपर्युक्त मंडलके पास ही लंबी पंक्ति में भिन्न-भिन्न प्रान्तीय सती स्मारकोंके अवशेष दृष्टिगोचर होते हैं, जिनमें से बहुतोंपर लेख भी हैं। इन स्मारकोंका सामाजिक दृष्टि से थोड़ा-बहुत महत्त्व है। इनपर अभी अधिक अन्वेषण अपेक्षित है। इन सती स्मारकोंके सामने बहुत-से टुकड़े स्थानाभावके कारण इस प्रकार अस्त-व्यस्त पड़े हैं, मानो उनका कोई महत्त्व ही न हो। इनमें भी चार जैनमूर्तियोंके खण्डितांश पड़े हैं। ___ जल-कूपके निकट एक दूसरा टीनका गृह और बना हुआ है। इसमें वे ही अवशेष संगृहीत हैं, जो खजुराहोसे लाये गये थे। शिल्पकलासे अपरिचित व्यक्तियोंको भी यहाँ आनन्द मिले बिना नहीं रह सकता । प्रवेशद्वारपर ही खजुराहोके एक प्रवेश द्वारका कुछ अंश रखा है । जिसमें नर्तकियोंकी विभिन्न भाव-भंगिमाओंसे युक्त मूर्तियाँ, कलाकारको अभिनंदित करनेको बाध्य करती हैं। भारतीय नारी जीवनका आनंद स्वाभाविक रूपेण इन मूर्तियोंके अंग-अंगपर चमक रहा है। अंग-विन्यास, उत्फुल्ल वदन, स्मित हास्य, संगोतके विभिन्न उपकरणोंने इनका महत्त्व और भी बढ़ा दिया है। इन सभीका महत्त्व शिल्प-कलाकी दृष्टि से समझा Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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