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________________ २३६ प्रयाग-संग्रहालयकी जैन-मूर्तियाँ होता है कि प्रस्तुत अवशेष ऋषभदेवकी प्रतिमाका है। इसपर अंकित धर्मचक्रके उभय भागमें मकर एवं तन्निम्न भागमें नवग्रहोंकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं । प्रस्तुत प्रतिमाका निर्माणकाल अंतिम गुप्तोंका समय रहा होगा। इसकी चौड़ाई २३" है । अतः दोनों एक ही हैं । उत्तराभिमुख बहुतसे भिन्न-भिन्न खण्डित अवशेष बिखरे पड़े हैं, जिनमें ऋषभदेव आदि तीर्थकरोंकी मूर्तियाँ हैं । ____ संग्रहालयके पूर्वकी ओर टीनका विशाल गोलाकार गृह बना हुआ है, जिनमें भूमराके बहुसंख्यक सुन्दर कलापूर्ण एवं अन्यत्र अनुपलब्ध अवशेष रखे गये हैं। प्राचीन भारतीय इतिहास और शिल्प-स्थापत्य कलाको दृष्टिमें इनका बहुत बड़ा महत्व है। अभीतक सांस्कृतिक दृष्टिसे इनपर समुचित अध्ययन नहीं हो पाया है। इन सभीको सरसरी तौरपर देखनेसे प्रतीत हुआ कि इसमें भारतीय लोक-जीवनकी विशिष्ट धाराओंके इतिहासकी कड़ियाँ बिखरी पड़ी हैं, शैव संस्कृतिके इतिहासपर उज्ज्वल प्रकाश डालनेवाली कलात्मक सामग्री भी पर्याप्त रूपमें है। शिवजीके समस्त गण कई लाल प्रस्तरों में बँटे हैं। इसी गृहमें प्राचीन मन्दिरस्थ स्तम्भके टुकड़े पड़े हैं, जिनपर नर्तकियोंकी भावपूर्ण मुद्राएँ अंकित हैं। सचमुच इनकी भावभंगिमाएँ ऐसे ढंगसे व्यक्त की गई हैं, मानों उन दिनोंका सुखी जन-जीवन ही जीवित हो उठा हो । ___ महेश्वर, गणेश आदि अन्य अवशेषोंका महत्व न केवल सौंदर्यकी दृष्टि से ही है, अपितु आभूषण और मुद्राओंकी दृष्टि से भी कम नहीं। __ जल-कूपके निकट विशाल टीनका छप्पर बना हुआ है। इसमें कौशाम्बी, खजुराहो और सारनाथसे लाये हुए, भारतीय संस्कृतिको सभी धाराओंके अवशेष पड़े हुए हैं, उनमें अधिकांश मंदिरोंके विभिन्न अंश हैं । कुछ शिल्प तो ऐसे सुन्दर हैं कि जिनकी स्वाभाविकता और सौंदर्यको लिपिबद्ध नहीं किया जा सकता। उदाहरणार्थ एक दो शिल्प ही पर्याप्त होंगे। एक प्रस्तरपर माताके उदरमें रहे हुए दो बच्चोंका जो उत्खनन Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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