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________________ २०८ खण्डहरोंका वैभव है। चौथे हाथमें बीजपूरक धारण किये हुए हैं। दायीं ओरकी दूरतम शासन देवी भी चतुर्भुजी हैं और समान रूपसे दूसरी जैसी ही हैं। जिस यक्षका उल्लेख ऊपर किया गया है, वह कुबेर ही जान पड़ते हैं, जो तोरण की दायीं ओरसे प्रथम ही उत्कीर्णित हैं। इनके बायें हाथमें सर्प एवं दायें हाथमें मोदक रखा हुआ है । पिछली ओर कलाकारने पत्तियों सहित छोटीमोटी-तरु-शाखाओंका प्रदर्शन किया है। यों तो इस प्रकारकी आकृतियाँ सभी मूर्तियोंके पृष्ठ भागमें अङ्कित हैं, परन्तु इनका अंकन अधिक स्पष्ट और स्वाभाविकताको लिये हुए हैं। मध्य भागके बायीं ओर चलनेपर पहली शासनदेवी फिर चतुर्भुजी है । दाहिने हाथमें शंख और बायें हाथमें चक्र उत्कीर्णित हैं। अतिरिक्त दो हाथोंमें कुछ फल-जैसी आकृति अंकित है, परन्तु खंडित होने के कारण निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि वे क्या लिये हुए हैं। दूसरी शासनदेवी द्विभुजी ही है । यह स्पष्टतः अंबिका हैं, क्योंकि बायें हाथमें शिशु एवं दाहिने हाथमें आम्रलुम्ब धारण किये हुए हैं । यद्यपि अम्बिकाके दो बच्चे होने चाहिए एवं सिंह-वाहन भी अपेक्षित था, परन्तु महाकोसल और तन्निकटवर्ती प्रदेशमें अम्बिकाकी दर्जनों ऐसी मूर्तियाँ मिली हैं, जिनमें दोनोंका ही स्पष्ट अभाव है । आम्रलुम्ब मात्रसे निस्सन्देह यह अम्बिका ही सिद्ध होती है। अन्तिम शासनदेवीके दायें हाथमें सदण्ड कमल है, एवं दूसरा हाथ जमीनको छुए हुए है। __ इस प्रकार इतनी मूर्तियोंवाले तोरण भारतमें कम ही उपलब्ध होते हैं । इस तोरणद्वारके उपरिभाग वाले हिस्सोंमें खुदी हुई देवियोंकी विभिन्न मूर्तियोंसे हम एक बातकी कल्पना कर सकते हैं कि उन दिनोंकी जैन-जनता देव-देवियोंमें अधिक विश्वास करती थी। यदि ऐसा न हुआ तो इसमें जिन-प्रतिमाओंका प्राधान्य रहता । इस तोरणका महत्त्व जैन-पुरातत्वकी दृष्टि से तो है ही, साथ ही साथ शिल्पकलाकी दृष्टि से मी इसका विशेष मूल्य है। प्रत्येक मूर्तियोंके उपरि Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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