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________________ देखता है, पर्यवेक्षण करता है, उनमें एकाकार होनेकी चेष्टा करता है, तभी तो वह टूटे-फूटे पत्थरके टुकड़ोंमें बिखरे हुए संस्कृति और सभ्यताके बीजोंको एकत्र कर उनका नवीन सामयिक स्फूर्तिदायक संस्करण तैयार करता है।" 'खंडहरोंके वैभव में लेखककी अनेक वर्षोंकी कठिन पुरातत्त्व-साधना १० लेखोंके रूपमें प्रतिफलित हुई है। इसमें ३ लेख मध्यप्रदेशके जैन, बौद्ध और हिंदू पुरातत्त्वसे सम्बंधित हैं और ३ लेख महाकोसलके पुरातत्त्वसे । २ लेखोंमें प्रयाग-संग्रहालय तथा विंध्यभूमिकी जैनमूर्तियोंका दिग्दर्शन है। शेष २ निबंध हैं---जैन-पुरातत्त्व तथा श्रमण संस्कृति और सौंदर्य । ये इतने सुंदर और उपादेय हैं कि पुरातत्त्वका कलापक्ष एवं दर्शन पक्ष ऐतिहासिक पृष्ठभूमिके साथ बुद्धिगम्य हो जाता है। 'खंडहरोंका वैभव' पढ़कर भारतीय पुरातत्त्वकी गरिमा तथा सौंदर्यकी छापके उपरांत जो दो भावनाएँ प्रबल रूपसे जागृत होती हैं वे हैं :-- . १. भारतीय पुरातत्त्वकी विविधतामयी विकासश्रृंखला और २. इस पुरातत्त्वके प्रति देशकी हृदयहीन उपेक्षा । इन दोनों बातोंको सार रूपमें समझ लेना यावश्यक है क्योंकि पुरातत्त्वके यही दो पहलू हैं जो हमारे जीवनको छते हैं और जिनके विषयमें हमारा दृष्टिकोण स्पष्ट हो जाना चाहिए। ___ जैन, बौद्ध, हिंदू-मंदिरों में आज स्थापत्य, मूर्तितक्षग और पूजा-विधान अादिकी एक परिपाटी बन गई है, जिसे बहुत-सी जगह आँख बंदकर, 'शास्त्रों के अाधारपर व्यवहारमें लाया जा रहा है। हममें से बहुतोंको इस विधानमें परिवर्तन करनेकी न कलात्मक क्षमता है न बौद्धिक सूझ । फिर भी यदि अाज कोई मंदिरकी बजावट के सम्बन्धमें, मूर्तिके परिकरकी कल्पनामें या पूजाके विधानमें परिवर्तनकी बात सोचे अथवा अपनी मान्यताको नया रूप दे तो वह 'अधार्मिक' तक कहा जा सकता है। अाग्रह बड़े दृढ़ हैं। हमारी कट्टरतामें हेरफेरकी गुंजाइश नहीं । हम पूजा खड़े होकर Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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