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________________ मध्यप्रदेशका जैन पुरातत्व बाद जब जैनोंका प्राबल्य घटा या जैनधर्मका आचरण करनेवाली जातिमें से आचार - विषयक परम्परा लुप्त हुई, तब कामकन्दलावाली किंवदन्तीमें इस मंदिर को भी लपेट लिया गया हो तो इसमें आश्चर्य नहीं है । भारत में बहुत से ऐसे धार्मिक स्थान हैं, जिनकी ख्यातिके पीछे नारियोंका नाम जुड़ा हुआ है | उदाहरणार्थ- पिसनहारीकी मढ़िया । १८५ प्रसंगतः एक बातका उल्लेख अत्यावश्यक जान पड़ता है कि उन दिनों डोंगरगढ़ के निकटवर्ती भू-भागोंपर जैनकलाकारों और जैनकलाकारों की बस्ती पर्याप्त प्रमाणमें रही होगी। सम्भव है उस समयकी बहुत सो मूर्तियाँ इन्हीं लोगों द्वारा बनवाई गई हों। भण्डारा जिलेमें जैनकलाकारों की बस्ती प्रायः हर एक गाँवमें मिलेगी । ये जैनकलाकार कलचुरियोंके अवशेष हैं । इनके नाम के आगे जुड़ा हुआ जैन शब्द इस बातका सूचक है कि कुछ समय पूर्व निश्चित रूपसे वे जैनधर्मका पूर्णतया आचरण करते रहे होंगे । इस जाति कुछ शिक्षित भाई मुझे कामठामें मिले थे । वे स्वयं बोले कि किसी समय हमारे पूर्वज जैन थे, पर ज्यों-ज्यों हमारा सम्बन्ध परिस्थितिजन्य विषमताओंके कारण, धार्मिक सिद्धान्तोंसे हटता गया; त्यों-त्यों हम इतने धर्मभ्रष्ट हो गये कि अहिंसाकी सुगन्ध भी आज हममें न रही । I अधिक अवकाश न मिलने के कारण मैं पहाड़ीकी पूर्णतः छानबीन तो नहीं कर सका, पर जितने भागको देखकर समझ सका, उससे मनमें कौतूहल हुआ कि डोंगरगढ़ - जैसा महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान विद्वानोंकी दृष्टिसे ओझल क्योंकर रहा - यहाँतक कि स्वर्गीय डाक्टर हीरालालजीने भी उपेक्षित रखा । आरंग रायपुर से २२ मील दूर बसे आरंगमें एक प्राचीन जैनमन्दिर है, जिसका एक भाग जीर्ण होने व गिरनेके भयसे सरकारने दुरुस्त करवा दिया है । यहाँके मन्दिरका शिखर अत्यन्त सूक्ष्म नक्काशीदार कोरणियोंसे आच्छादित होनेसे बहुत ही कलापूर्ण एवं मनोज्ञ है। शिखरके चारों ओर देव-देवियों १३ Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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