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________________ १८४ खण्डहरोंका वैभव पन्द्रहवीं या सोलहवीं सदीके बीच कभी हुई होगी। उन दिनों भण्डारा जिलेमें जैनोंका अच्छा स्थान था; कारंजाके भट्टारकका दौरा नागरा तक हुआ था, साथ ही इस शताब्दीकी कुछ मूर्तियाँ लांजी, बालाघाट, पद्मपुर, आमगाँव, कामठा और किरनपुर में पाई जाती हैं, यद्यपि इन स्थानोंमेंसे कुछ एक तो डोंगरगढ़से काफ़ी दूर पड़ते हैं, पर लांजी वगैरह दूर होते हुए भी, कलचुरियों द्वारा शासित प्रदेश था, अर्थात् शासनकी दृष्टि से दूरत्व नहींके बराबर था। इसी समयकी.गंडईमें भी कुछ एक मूर्तियाँ पाई जाती हैं । डोंगरगढ़से बारहवें मीलपर बोरतालाब रेल्वे स्टेशन पड़ता है। यहाँपर आज भी इतना बीहड़ जंगल है कि रात्रिको ग्रामकी सीमातक जाना असम्भव है। यों तो यह किसी समय विशेष रूपसे सुरक्षित जंगल माना जाता था, पर आज वहाँ एक शेरने ऐसा उपद्रव मचा रखा है कि दो वर्पमें १५५ व्यक्ति स्वाहा करने के बाद भी वह मस्तीसे घूमता है; इसी जंगलके द्वारपर एक जलाशय बना हुआ है । जलाशयसे ठीक उत्तर चार फलांग घनघोर जंगलमें प्रवेश करनेपर खंडित मूर्तियोंके एक दर्जनसे कुछ अधिक अवशेष दिख पड़ेंगे; इसमें मस्तक-विहीन एक ऋषभदेवकी प्रतिमा है, जिसपर “संवत् १५४८''जोवरा डुंगराख्यनगरे नित्यं प्रणमंति ।" यह लेख भी उपर्युक्त मन्दिर व मूर्तियोंके निर्माण कालीन परिस्थितिपर कुछ प्रकाश डालता है । जीवराज पापड़ीवालद्वारा सारे भारतमें मूर्तियाँ स्थापित करवानेकी न केवल किंवदन्तियाँ ही प्रचलित हैं अपितु कई प्रांतमें मूर्तियाँ भी उपलब्ध होती हैं। लेखान्तरित "जीवरा" शब्दोंसे मैं जीवराज पापड़ीवालका ही सम्बन्ध मानता हूँ और डुंगराख्य नगरसे डोंगरगढ़ । यदि लेखकी मिती मिल जाती तो अन्य मूर्तियोंकी मितियोंसे तुलना करते तो अवश्य ही नवीन तथ्य प्रकाशमें आता। सूचित समयमें निस्सन्देह डोंगरगढ़में जैनोंका प्राबल्य रहा होगा। उसी समय जैनसमाजकी किसी प्रतिष्ठित नारीद्वारा डोंगरगढ़का उपर्युक्त मन्दिर बना होगा। कुछ समय Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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