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________________ मध्यप्रदेशका जैन-पुरातत्त्व मूर्तिपर अत्यन्त श्रद्धा थी'। यहाँ के अम्बिकादेवीके मन्दिर में अनेक जैन प्रतिमाएँ और पुरातन जैन-मन्दिरोंके ध्रुटित स्तम्भ अस्त-व्यस्त पड़े हैं। कहा जाता है कि ये मूर्तियाँ वहाँसे चार फलांग दूर एक टीलेसे लाकर यहाँ रखी गई हैं। सूक्ष्म रीतिसे देखा जाय तो स्पष्ट मालूम होगा कि पहले यह जैन-मन्दिर या। मन्दिरके तोरणमें १४ महास्वप्न और कुम्भ कलशादि बने हुए हैं। भद्रावतीसे १॥ मोल दूर जो बिजासन गुफ़ा है, उसके बरामदेमें भी चार प्राचीन जैन-मूर्तियाँ और एक सरस्वतीकी मूर्ति अवस्थित है। भद्रनागके मन्दिरके स्तम्भोंपर भी जैन-मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इस प्रकार भद्रावतीमें ५० से ऊपर १० वींसे लेकर १३ वीं शतीकी मूर्तियाँ उपलब्ध हैं, जिनकी मूर्ति विज्ञानशास्त्रकी दृष्टि से विशेष महत्त्व है। पौनार - यह ग्राम वर्धासे नागपुर जानेवाली सड़कपर, आठवें मीलपर है । यह वही ग्राम है, जहाँ सर्वप्रथम आचार्य विनोबा भावेने महात्मा गांधी द्वारा प्रचारित व्यक्तिगत सत्याग्रह किया था । एक समय यह ग्राम वाकाटक-साम्राज्यको राजधानी था। कहा जाता है कि महाराज प्रवरसेनका बसाया हुआ प्रवरपुर, यही पवनार है। ऐतिहासिक दृष्टिसे इस कथामें आंशिक सत्य अवश्य है, क्योंकि महाराज प्रवरसेनका जो दानपत्र यहाँ प्राप्त हुआ है, उसके अनुसार यहाँ के पुरातन भग्नावशेषोंमें वाकाटक साम्राज्यका कुछ असर अवश्य रहा है। वहाँपर चार विशालकाय जैन-प्रतिमाएँ एवं खण्डहरोंमें जैन-धर्मोपयोगी पट्टक हमने स्वयं देखे हैं । साथ ही नदीके तीरपर कुछ ऐसे स्तम्भ भी पाये गये हैं, जिनपर कलश व स्वस्तिक उत्कीणित o, Middletom-Stewart, “The Dream God" The Times of India illustrated weekly, july 6, 1924, P. 10-12, Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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