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________________ मध्यप्रदेशका जैन-पुरातत्त्व १५३ प्रश्न है। मौर्य-साम्राज्य जब उन्नतिके शिखरपर था, जब जैनधर्म भी पूर्णतया सम्पूर्ण भारतमें फैल चुका था। यद्यपि स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता कि मध्यप्रान्तमें भी उस समय जैनसंस्कृतिका सूत्रपात हो चुका था, पर मध्यप्रान्तके निकटवर्ती वितीदिश-वइदिश-विदिशामें उन दिनों जैन संस्कृतिका व्यापक प्रभाव था। बल्कि बड़े-बड़े प्रभावक जैनाचार्योंकी वह विहारभूमि था। वहाँपर बड़ी-बड़ी जिनयात्राएँ निकला करती थीं, जिनका उल्लेख आवश्यक व निशीथ चूणियाँ में मिलता है। ___ इस उल्लेखसे मुझे तो ऐसा लगता है कि तब जैनधर्मका अस्तित्व इस भूमिपर था। इसके प्रमाणस्वरूप रामगढ़ पर्वतकी गुफाके चित्रको उपस्थित किया जा सकता है। इसका समय और आर्यसुहस्तिका समय लगभग एक ही है। यद्यपि उपर्युक्त अशोकके समयकी नहीं है, पर यह तो समझनेकी बात है कि कुणालके समय जब विदिशा जैनोंका केन्द्र था, तो क्या दस-पाँच वर्षमें ही उन्नत हो गया ? उससे पूर्व भी तो श्रमण परम्पराके अनुयायियोंका अस्तित्व अवश्य रहा होगा। अशोकके पौत्र सम्राट सम्प्रतिने विदेशोंतकमें जैनधर्म फैलाकर, अपने पितामहका अनुकरण किया । वह बौद्ध था, सम्प्रति जैन । ___मध्यप्रदेशमें जैनसंस्कृतिका क्रमिक विकास कैसे हुआ, इसकी सूचना तो हमें पुरातन अवशेषोंसे मिल जाती है, परन्तु प्राथमिक स्वरूपको स्पष्ट करनेवाले साधन बहुत स्पष्ट नहीं हैं। अनुमानसे काम लेना पड़ रहा है। प्रमाण न मिलनेका एक कारण, मेरी समझमें यह आता है कि जिन नामोंसे मध्यप्रदेशके भाग आज पहचाने जाते हैं, वे नाम उन दिनों नहीं थे। प्राचीन जो नाम मिलते हैं, उन प्रदेशोंमें आज इतना प्रान्तीय विभाजन हो गया है कि जबतक हम समीपवर्ती भूभागस्थ अवशेषों व सामाजिक रीति-रिवाज व साहित्यिक परम्पराका गहन अध्ययन न कर लें, तबतक निश्चित तथ्य तक पहुँचना अति कठिन हो जाता है । मेरा तो निश्चित विश्वास है कि जबतक प्रान्तीय विद्वान् मालव, विन्ध्य, महाराष्ट्र, Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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