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________________ जैन-पुरातत्व भारतीय कलातीर्थ स्वरूप जैनमन्दिरोंकी कलाका आजतक समुचित मूल्यांकन नहीं हुआ, जैनोंने कभी इन पर ध्यान ही नहीं दिया, जैसे वह हमारी कलात्मक सम्पत्ति ही न हो। कलकत्ता विश्वविद्यालयकी ओरसे "हिन्दू टेम्पल" नामक एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है । इसमें दर्जनों चित्र हैं। एक हंगेरियन स्त्री डा० स्टेला क्रेमरीशने इसे सश्रम तैयार किया है। मैंने उनसे कहा था कि जैनमन्दिरोंके बिना, वह इतिहास और शिल्पका परिचय पूर्ण हो ही नहीं सकता। उसने कहा कि मेरा दुर्भाग्य है कि मैं जैनाश्रित कलाकृतियोंको श्रम करके भी, प्राप्त न कर सकी। कुछ स्थानोंपर मैं गई तो चित्र लेने ही नहीं दिये और शाब्दिक सत्कारकी तो बात ही क्या ! मैं तो बहुत ही लज्जित हुआ कि आजके युगमें भी हमारा समाज संशोधनको न जाने क्यों घृणाकी दृष्टिसे देखता है। मेरे लिखनेका तात्पर्य इतना ही है कि हमारी सुस्ती हमें ही बुरी तरह खाये जा रही है, न जाने आगामी सांस्कृतिक निर्माणमें जैनोंका कैसा योगदान रहेगा, वे तो अपने ही इतिहासके साधनोंपर उपेक्षित मनोवृत्ति रक्खे हुए हैं। ४ मानस्तम्भ मध्यकालीन भारतमें जैनमन्दिरके सम्मुख विशाल स्तम्भ बनवानेकी प्रथा, विशेषतः दिगम्बर जैनसमाजमें रही है । दक्षिण भारत और विन्ध्यप्रान्तमें ऐसे स्तम्भोंकी उपलब्धि प्रचुर परिमाणमें हुई है। प्राचीन वास्तु विषयक ग्रन्थोंमें कीर्तिस्तम्भोंकी अांशिक चर्चा अवश्य है, पर मानस्तम्भोंके विषयमें वे मौन हैं । यद्यपि जैन पौराणिक साहित्य तो इसका अस्तित्व बहुत प्राचीन कालसे बताता है, पर उतने प्राचीन या सापेक्षतः अर्वाचीन स्तम्भ उपलब्ध कम हुए हैं । उपलब्ध साधनोंसे तो यही कहा जा सकता है कि मध्यकालमें जैन-वास्तुकलाका वह एक अंग अवश्य बन गया था । यह मानस्तम्भ इन्द्रध्वजका प्रतीक होना अधिक युक्तिसंगत जान पड़ता Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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