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________________ जैन-पुरातत्त्व गुर्वावली एवं तीर्थमालाओंमें भी इसकी चर्चा आई है । जैन किंवदन्ती इसका सम्बन्ध श्रेणिक और चेलणासे जोड़ती है, यह ठीक नहीं है। ___फर्गुसनने एक स्थानपर लिखा है कि-"जैन कभी गुहा निर्माता रहे ही नहीं।” आगे फिर लिखा है-"जैनोंके गुहामंदिर उतने प्राचीन नहीं हैं, जितने अन्य दोनों सम्प्रदायोंके । शायद उनमेंसे एक भी हवीं शतीसे पूर्वका नहीं।" यह कथन सर्वथा भ्रामक है। स्पष्ट रूपसे कहा जाय तो अति प्राचीन जितनी भी गुफाएँ उपलब्ध हैं, उनमेंसे बहुतोंका निर्माण जैनों द्वारा ही हुआ है। - सर्वप्राचीन गुफा गिरनार बराबर अरौ नागार्जुनी पहाड़ियोंमें है । इनमेंसे दोका अोप और स्निग्धत्व मौर्य-कालकी सूचना देता है। दो आजीवक सम्प्रदायसे सम्बन्धित है, जो जैनोंका एक उपसम्प्रदाय था । अशोकके पुत्र दशरथने इन्हें दान किया था। उदयगिरि-खंडगिरिकी जैन गुफाएँ विश्वविख्यात हैं। ग्वालियर स्टेटके अन्तर्गत उदयगिरि ( भेलसा) में गुप्त कालीन जैन-गुहा-मंदिर है। इसमें भगवान् पार्श्वनाथकी भव्य प्रतिमा थी। अब तो केवल सर्पफन शेष है । वहाँ एक जैन-लेख भी इसप्रकार पाया गया है१ नमः सिद्धेभ्यः (1) श्री संयुतानां गुणतोयधीनां गुप्तान्वयानां नृपसत्तमाना२ राज्ये कुलस्याधिविवर्धमाने षड्भिर्युतैः वर्षशतेथ मासे (1) सुकार्तिके बहुलदिनेथ पंचमे ३ गुहामुखे स्फटविकतोत्कटामिमां [1] जितोद्विषो जिनवर पार्श्वसंज्ञिका जिनाकृति शमदमवान ४ चीकरत् [1] आचार्य भद्रान्वयभूषणस्य शिष्यो ह्यसावार्य कुलोद्गतस्य [1] भाचार्य गोश Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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