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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । ( ३७ ) रायसन - ग्रामको पचानेवाली, तिक्त, भारी, गरम, कफवातनाशक तथा शोथ, श्वास, वातरक्त, वातशूल, उदररोग, कास, ज्वर, विष, स्लीप्रकारकी वातव्याधियां तथा सिध्म, कोट इनको नष्ट करती है ॥ १६५-१६७ ॥ नाकुली । नाकुली सुरसा नागसुगन्धा गंधनाकुली । नकुलेष्टा भुजंगाक्षी सर्पाक्षी विषनाशनी ॥ १६८ ॥ नाकुली तुवरा तिक्ता कटुकोष्णा विनाशयेत् । भोगिलूतावृश्विकाखु विषज्वरकृमित्रणान् ॥ १६९ ॥ नाकुली, सुरमा, नागसुगन्धा, गंधनाकुली, नकुलेष्टा, भुजंगाक्षी, सर्पाक्षी और विषनाशिनी यह इसके संस्कृत नाम हैं । इसे हिन्दी में नाई तथा नाकुलीकन्द, फारसी में विषमूंगरी और अंग्रेजीमें Kanwolfia Scrpentina कहते हैं । नाकुली - कषाय रसधाली, तिक्त, कटु, उद्या तथा सर्प लूता ( मकडी), बिच्छू तथा चूहेका विष, ज्वर, कृमि तथा व्रण इनको नष्ट करती है ।। १६८ ।। १६९ ।। माचिका । माचिका प्रस्थकांबष्ठा तथांबांबालिकांबिका | मसूरविदला केशी सहस्रा बालमूलिका ॥ १७० ॥ माचिकाम्ला रसे पाके कषाया शीतला लघुः । पक्कातीसार पित्तास्रकफ कंड्डामयापहा ॥ १७१ ॥ माचिका, प्रस्थका, अम्बष्ठा, अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका, मसूरविदला, केशी. सहस्त्रा और बालमूलिका यह माचिकाके संस्कृत नाम हैं । इसे हिन्दी में मकोह, फारसी में रोधातरीख और अंग्रेजीमें Solenum Nigrum कहते हैं । 1 मकोह-रसमें अम्ल, पाकमें कषाय, शीतल, हलका और पक्वातिसार, पित्त, रक्तविकार, कफ तथा कण्डुरोग ( खुजली ) दूर करता है १७० १७१ Aho Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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