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________________ (३०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । सा शुक्ला क्षीरकाकोली बयःस्था क्षीरवल्लिका। कथिता क्षीरिणी धारी क्षीरशुक्ला पयस्विनी।।१३५॥ काकोलीयुगलं शीतं शुक्रल मधुरं गुरु । बृंहणं वातदाहात्रपित्तशोथज्वरापहम् ॥१३॥ जहां महामेदा उत्पन्न होती है वहीं अर्थाव मोरंग पहाडमें ही क्षीरकाकोली उत्पन्न होती है और जहां जहां क्षीरकाकोली उत्पन्न होती है वहीं काकोली उत्पन्न होती है। क्षीरकाकोलीका कन्द पीवरी असगन्धके समान होता है और उसमें से गन्धयुक्त दूध निकलता है, यह क्षीरकाकोलीके लक्षण हैं, काकोलीके चिह्न कहते हैं-काकोलीः भी क्षीर काकोलीके समान ही होती है किन्तु यह किश्चित् काली होती है। यही इन दोनोंमें भेद है । काकोली, वायसोली, वीरा, कायस्थिका यह काकोलीके नाम हैं। सफेद काकोली क्षीरकाकोली कही जाती है। वयस्या,क्षीरवल्लिका, क्षीरिणी धारी,तीरशुक्ला और पयस्विनी यह तीरकाकोलीके नाम हैं।दोनों काकोलि ये-शीतल, वीर्यको बढानेवाली, मधुर, भारी, धातुओंको पुष्ट करने वाली तथा वात, दाह, रक्तविकार,पित्त, शोथ; ज्वर, इन सबको जीतने चाली हैं ॥ १३१-५३६ ॥ . ऋद्धिवृद्धवोः। ऋद्धिवृद्धिश्च कंदौ द्वौ भवतः कोशयामले। श्वेतलोमान्वितौ कन्दौ लताजातौ सरंध्रकौ॥१३७॥ तावेव वृद्धिर्ऋद्धिश्च भेदमप्येतयोब्रुवे । तूलग्रंथिसमा ऋद्धिमिावत्तफला च सा ॥१३८॥ वृद्धिस्तु दक्षिणावर्तफला प्रोक्ता महर्षिभिः । ऋद्धियुग्मं सिद्धिलक्ष्म्यौ वृद्धरण्याह्नया इमे।।१३९॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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