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________________ (२६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । वायविडङ्ग-कटु तीक्ष्ण, उष्ण, रूक्ष, जठरानिको चैतन्य करनेवाला और हलका है। तथा शूल, आध्मान, उदररोग, कफविकार, कृमि और वायुके बन्धको दूर करता है ॥ ११२ ॥ ११३ ॥ तुंवरुः। तुंबरुः सौरभः सौरो वनजः सोऽणुजोंऽधकः । तुबरु कथितं तिक्तं कटु पाकेऽपि तत्कटु ॥ ११४॥ रूक्षोष्णं दीपनं तीक्ष्णं रुच्यं लघु विदाहि च ।। वातश्लेष्माक्षिकर्णोष्ठशिरोरुग्गुरुताकृमीन् ॥११॥ कुष्ठशूलारुचिश्वासप्लीहकृच्छ्राणि नाशयेत् । तुम्बरु, सौरभ, सौर, धनज, सानुज, (सोऽणुज ) और अन्धक यह नेपाली धनिये के नाम हैं । इसे हिन्दीमें नैपाली धनिया कहते हैं। तुम्घरु-तिक्त, कटु, पाकमें भी कटु, रूक्ष, उष्ण, अग्निदीपक, रुचिका. रक, हलका, दाहको उत्पन्न करनेवाला तथा वात, कफ, नेत्ररोग, कर्णरोग, पोष्ठरोग, शिरोरोग, भारीपन, कृमि, कोढ, शूल, अरुचि, श्वास, प्लीहा तथा कृच्छ इनको नाश करनेवाला है ॥ ११४ ।। ११५ ।। वंशरोचना। स्याद्वंशरोचना वांशी तुगाक्षीरी तुगा शुभा॥११६॥ त्वक्षीरी वंशजा शुभ्रा वंशक्षीरी च वैष्णवी । वंशजा बृंहणी वृष्या बल्या स्वाद्वी च शीतला११७॥ तृष्णाकासज्वरश्वासक्षयपित्तास्रकामलाः। हरेत्कुष्ठं व्रणं पांडुं कषायो वातकृच्छजित् ॥११८॥ वंशरोचना, घांशी, तुगाक्षीरी, तुगा, शुभा, स्वक्षीरी, वंशजा, शुभ्रा, वंशक्षरी तथा वैष्णवी यह वंशलोचन के नाम है। इसे हिन्दीमें वंशलोचन Ano! Shrutgyanem.
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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