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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (२५) हपुषा। तन्मध्ये प्रथमफलं मत्स्यवद्विलगंधकम् । द्वितीयमश्वत्थफलसदृशं मत्स्यगंधि च ॥ १०९॥ हपुषा हवुषा विना पराश्वत्थफला मता। मत्स्यगंधाप्लीहहंत्रीविषघ्नीध्वक्षनाशिनी॥१०॥ हपुषा दीपनी तिक्ता मृदूष्णा तुवरा गुरुः । पित्तोदरसमीराोंग्रहणीगुल्मशूलहृत् ॥ १११ ॥ पराप्येतद्गुणा प्रोक्ता रूपभेदो द्वयोरपि । हाऊबेर दो प्रकारका है एक तो मच्छी की तरह की दुर्गन्ध युक्त, दूसरा पीपल के फलके समान और मच्छी की गन्धवाला। हपुषा, हषा, विना यह प्रथम प्रकार के हाऊबेरके नाम हैं और अश्वस्थफला, प्लीह त्री. विषघ्नी और चांक्षनाशिनी यह दूसरे हाऊबेरके नाम हैं। इसको हिन्दीमें हाउबेर, तथा अंग्रेजीमें Thevetic Narifoia कहते हैं। हाऊबेर अग्निको दीपन करनेवाली, तिक्त, मृदु, उष्ण, कषैली, भारी तथा पित्तरोग, उदररोग, वायु रोग, बवासीर, संग्रहणी, गुल्म और शूल इनके हरनेवाली है। दूसरे हाऊबेरमें भी यही गुण है। रूपमात्रका ही भेद है॥ १०९-१११॥ विडंगम् । पुंलि क्लीवे विडंगः स्यात्कृमिघ्नो जंतुनाशनः । तंडुलश्च तथा वेल्लममोघा चित्रतंडुलः ॥ ११२॥ विडंगं कटु तीक्ष्णोष्ण सूक्षं वह्निकरं लघु । शूलाध्मानोदरश्लेष्मकृमिवातनिबन्धनुत् ॥११३॥ · विडंग पुल्लिङ्ग अथवा नपुंसक दोनों लिंगों में होता है । कृमिघ्न, जन्तुनाशन, तण्डुल, वेल्ल, अमोघा और चित्रतंडुल यह वायविडङ्गके नाम हैं। हिन्दीमें इसे वायविडङ्ग, फारसीमें बरंग, कावनी और अंग्रेजीमें Bubreng कहते हैं। Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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