SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. ट (५) हितकारी है, पूतना लेप करनेके लिये उत्तम हैं, अमृता हरड शोधन ( रेचन कार्य ) में हितकारी है, प्रभया नेत्र विकारोंके लिये श्रेष्ठ है, जीवन्ती सब रोगों को हरनेवाली है, और चूर्णों में चेतकीका प्रयोग करना चाहिये ॥ चेतकी वर्ण में दो प्रकार की है-सफेद और काली । सफेद प्रायः छे अंगुल लम्बी होती है और काली एक अंगुल लम्बी होती है | कोई हरड स्वादमात्रसे, कोई गन्ध लेनेसे, कोई स्पर्श मात्रसे और कोई दृष्टिमात्र से ही दस्त लाने लगती है । इनमें चेतकी हण्डके वृक्ष के नीचे हो जो मनुष्य या पशु पक्षि मृगं आदि लख जाते हैं उनको तत्क्षण दस्त होने लगते हैं । उत्तम चेतकी हरड जबतक मनुष्य हाथमें धारण करता है तबतक उसको इस हरड के प्रभाव से बराबर विरेचन होता रहता है राजा आदि सुकुमार पुरुषोंको, कृश पुरुषोंको तथा अौषध पीने से द्वेष रखने वालों को चेतकी हरड परम हितकारी और सुखपूर्वक विरेचन करनेवाली है | इन सातों ही जातिकी हरडोंमें विजया हरड प्रधान है सब स्थानों में मिल सकती है, तब रोगोंमें हितकारी है और इसका : सुखपूर्वक प्रयोग किया जा सकता है ॥ १०- १७ ॥ हरीतकीगुणाः । हरीतकी पञ्चरसालवणा तुवरा परम् । रूक्षोष्णा दीपनी मेध्या स्वादुपाका रसायनी ॥ १८ ॥ चक्षुष्या लघुगयुष्या बृंहणी चानुलोमनी । श्वासकासप्रमेहार्शः कुष्ठशोथोदर क्रिमीन् ॥ १९ ॥ वसग्रहणी रोग विबन्धविषमज्वरान् । गुल्माध्मानत्रणच्छर्दिहिका कंठहृदामयान् ॥ २० ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy