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________________ ( ४०८ ) aftaarशविण्टुः भा. टी. । मष्ट करती है। यह (अली कमस्य ) सीखा तो कोठेको शुद्ध करनेबाली, किचित पिकाप और वि बातनं तथा नुस्तम्भ रोगमें विशेष करक हितकारी है ॥ ६६-६६ ॥ H अय मुद्रा द्रकवटका: ( अदरकवडा ) । मुद्गपिष्टिविरचितान्वां तैलेन पाचितान् । इस्तेन पूर्णयेत्सम्यक्त स्मिश्चूर्णे विनिक्षिपेत् ॥६७॥ भृष्टं दिग्वाईकं मृक्ष्मं मरीच जीरकं तथा । निंबूरमं यवानीं च युक्त्या सर्वे विमिश्रयेत् ॥ ६८ ॥ मुद्गपिष्टि पचेत्सम्यक्स्था ल्यामास्तारकोपरि । तस्यास्तु गोरकं कुर्यात्तन्मध्ये पूरणं क्षिपेत् ॥ ६९ ॥ तैले तान्गोलका पत्ता कथितायां निमज्जयेत् । गोलकाः पाचकाः प्रोतांस्ते वाईक वटा अपि ॥ ७० ॥ मुद्रार्द्धकवटा रुच्या लघवो बलकारकाः । : दीपनास्तर्पणाः पथ्या स्त्रषु दोषेषु पूजिताः ॥७१॥ मूंग की पिट्टीकी बड़ी बनाकर मेलमें पकावे, पश्चात् हायसे मलकर चूर्ण श्ले, उसमें भुनी हुई हींग, छोटे छोटे अदरक के टुकडे, भुना हुआ 來 जीरा, मिरव, नींबूस रन और अजवायन, ये सब युकिसे मिलाकर फिर कट ईमें पकाये, पश्चात इसके गोले बनाकर उसके भीतर मसाला भरकर फिर उन गोल' को सेट में पकावे, पक्रनेपर बढी डाल देवे । ये पंडे-कारक, पाचक, हलके, बलदायक, अभिप्रदीपक, वृतिकारक, पश्य और त्रिदोषनाशक हैं ।। ६७-७१ ॥ अथ पौरी (फुलौरी) दालयश्चणकानां तु निस्तुषा यन्त्रपेषिताः । तच्चूर्ण बेसनं प्रोक्तं पाकशास्त्रविशारदैः ॥ ७२ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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