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________________ (३८४) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । सुरभिः सौरभेयी च माहेयी गौरुदाहृता। गोमांस तु गुरु स्निग्धं पित्तश्लेष्मविवर्द्धनम् ॥ बृंहण वातद्वल्यमपथ्यं पीनसप्रणुत् ॥ ८१ ॥ बनीवर्द, वृषभ, ऋषभ, वृष, अनडूवान्, सौरभेष, गौ, उक्षा और भद्र ये बैल के संस्कृत नाम हैं। पौर सुरभि, सौरभेयी, माहेयी और गौ, ये गायके संस्कृत नाम हैं। बलका मांस-भारी, स्निग्ध, पित्त तथा कफवद्धक, पुष्टिकारक, वात. नायक, बलदायक, अपश्य और पीनस रोगनाशक है। ८० ॥ ८१ ॥ अथ अश्वः (घोडा)। घोटकेऽप्यश्वतुरगास्तुरंगाश्च तुरंगमाः। वाजियाहार्वगन्धर्वहयसैन्धवसप्तयः ॥ ८२ ॥ अश्वमांस तु तुवरं वह्नित्कफपित्तलम् । वातहबृंहणं बल्यं चक्षुष्यं मधुरं लघु ॥ ८३ ॥ घोटक, अश्व, तुरग, तुरंग, तुरंगम, वाजि, वाह, पर्व, गन्धर्व, हय, सैंधव और साम ये घोडेके संस्कृत नाम हैं। योडेका माल-कसैला, अग्निकारक, कफ तथा पित्तको करनेवाला, पातनाशक, पुष्टिदायक, बळकारक नेत्रोंको हितकारी, मधुर पौर हलका है॥ ८२ ॥ ८३, अथ कूलेंचराः। तत्र महिषः ( भैंसा)। महिषो घोटकारिः स्यात्कासरश्च रजस्वलः । पीनस्कन्धः कृष्णकायो लुलायो यमवाहनः ॥८४॥ माहिषस्यामिषं स्वादु स्निग्धोष्णं वातनाशनम् । Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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