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________________ भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. 1 अथ ग्राम्यच्छागः ( बकरा ) | छागलो बर्करश्छागो बस्तोऽजश्छेलकः स्तुभः । अजा छागा स्तुभा चापिछेलिकाचगलस्तनी ॥७०॥ हागमांसं लघु स्निग्धं स्वादुपाकं त्रिदोषनुत । नातिशीत मदाहि स्यात्स्वादुपीनसनाशनम् ॥ ७१ ॥ परं बलकरं रुच्यं बृंहणं वीर्यवर्द्धनम् । अजायास्त्वप्रसुताया मांसं पीनमनाशनम् ॥ ७२ ॥ शुष्ककासेऽरुचौ शोषे हितमग्नेश्च दीपनम् । अजासुतस्य बालस्य मांस लघुतरं स्मृतम् ॥७३॥ हृद्यं ज्वरहरं श्रेष्ठं सुखहं बलदं भृशम् । मांसं निष्कासिताण्डस्य छागस्यकफकृद्गुरु ॥ ७४ ॥ स्रोतः शुद्धिकरं बल्यं मांसदं वातपित्तनुत् । वृद्धस्य वातलं रूक्षं तथा व्याधिमृतस्य च । ऊर्द्ध विकारघ्नं छागमुण्डं रुचिप्रदम् ॥ ७५ ॥ छागल, वर्कर, छाग, बस्त, : अज, छेलक धौर स्तुभये बकरे के -संस्कृत नाम हैं । ₹ ३८२ ) बकरे का मांस हलका, स्निग्ध, पाकमें मीठा, त्रिदोषनाशक, बहुत शीतल नहीं, दाहकारक नहीं स्वादु, पीनसनाशक, अत्यन्त बलकर्त्ता, चिकारी, पुष्टिदायक और बीर्यवर्द्धक है । अप्रसूता ( बिनाच्याई ) बकरीका मांस - पीनसको नष्ट करनेवाला, अग्निदीपक और सूखी खांसी, अरुचि तथा शोषरोगमें दिवकारी है। बकरीके बच्चेका मांस बहुत हलका, हृदयके प्रिय, ज्वरनाजक, श्रेष्ठ, सुखदायक और बहुत बलदायक है। जिसके अण्ड निकालडाले हों ऐसे बकरे का मांस-कफकारक, भारी, ताडियोंको शुद्ध करनेवाला, बलदायक
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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