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________________ हरातक्यादानघण्टुः भा. टा.। (३७३ ) कारण्डः कपर्दिकाख्यो बृहद्धंसभेदः । स्थूला कठोरा वृत्ता च यस्याश्चञ्चूपरि स्थिता । गुटिका जम्बुसदृशी प्रोक्ता नन्दीमुखीति सा ॥३०॥ बलाका बगुली इति लोके ॥ प्वाः पित्तहराः स्निग्धा मधुराः गुरवो हिमाः । वातश्लेष्मप्रदाश्चापि बलशुक्रकराः सराः ॥ ३१॥ हंस, सारस, चकवा, बगला, क्रौं व (ढेंग), शरारी (बगलेका भेद ), नन्दीमुखी, बत्तक और बळाका आदि जीवोंको प्लब कहा है ये जलमें तेरते हैं, इसकारण इनका नाम प्लव है जिलकी चोंचके ऊपर मोटी, कठोर, गोल और जम्बूके सदृश गोलाई हो उसको नन्दीमुखी करते हैं प्लवजीवोंका मांस-पित्तनाशक, चिकना, मीठा, भारी, शीतल, चात तथा कफको उत्पन्न करनेवाला, बलदायक, वीर्यवर्द्धक और दस्ता. घर है ॥२९-३१॥ ___ अथ कोशस्थानां ( ढकनेके मध्यमें रहनवाले प्राणियोंकी ) गणना गुणाश्च । शंखशंखनखश्चापि शक्तिशम्बूककर्कटाः। जीवा एवंविधाश्चान्ये कोशस्थाः परिकीर्तिताः॥३२॥ ____ शंखनखः क्षुद्रशंखः। कोशस्था मधुराः स्निग्धा वातपित्तहरा हिमाः । बृहणा बहुवर्चस्का वृष्याश्च बलवर्द्धनाः ॥ ३३ ॥ शंख, छोटाशंख, सीप, शम्बूक (जल की छोटी सीप) और कर्कट केकडा पादिक तथा इसीप्रकारके और भी जीव कोशस्थ कहाते हैं । कोशस्थजीवोंका मांस-मधुर, चिकना, पात तथा पित्तनाशक, शीतल पुष्टिकारक, बहुत मलका , वीर्यवर्द्धक और नल दायक है ॥ ३२ ॥ ३३ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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