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________________ ( ३७२ ) भावप्रकाशानेघण्टुः भा. टी. अथ ग्राम्याणां (ग्राम्य पशुओंकी गणना गुणाश्च । ' छागमेष वृषाश्वाश्वा ग्राम्याः प्रोक्ता महर्षिभिः । ग्राम्या वातदराः सर्वे दीपनाः कफपित्तलाः । मधुरा रसपाकाभ्यां बृंहणा बलवर्द्धनाः ॥ २६ ॥ बकरी, मेंढा, बैल और घोडा इत्यादि जीव ग्राम्य हैं । ग्राम्य जीवोंका मांस - वातनाशक, अग्निको दीपन करनेवाला, कफ तथा पित्तकारक, पाक में तथा रसमें मधुर, पुष्टिदायक और बलवर्द्धक है ॥ २६ ॥ अथानूपाः । तत्र कूलेचराणां गणना गुणाश्च । लुलायगण्डवाराहचमरीवारणादयः । एते कूलेचराः प्रोक्ता यतः कूले चरन्त्यपाम् ॥२७॥ कुलायो महिषः । गण्डः खड्गः। चमरी चमरपुच्छी गौः । कूलेचरा मरुत्पित्तहरा वृष्या बलावहाः । मधुराः शीतलाः स्निग्धा मूत्रलाः श्लेष्मवर्धनाः २८ भैंसा, गेडा, सुभर, चमरगाय ( सुरेमाय ) और हाथी आदि कूलेचर ( जल के किनारे रहनेवाले ) हैं । कूलेचरजीवों का मांस वात तथा पित्तनाशक, वीर्यवर्द्धक, बलदायक, मधुर, शीतल, स्निग्ध, मूत्रको बढानेवाला और कफवर्द्धक है || २७ ॥ २८ ॥ अथ प्लवानां (पंक्तियोंसे आकाशमें उडनेवाले पक्षियोंकी ) गणना गुणाश्च । हंससारसकारण्डबकक्रौञ्चशरारिकाः । नंदीमुखी सकादम्बा बलाकाद्याः प्लवाः स्मृताः । पुवंति सलिले यस्मादेते तस्मात्लवाः स्मृताः २९
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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