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________________ ( ३६० ) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । भेडका दूध तेलोंमें कुम्भेका तेल तथा इक्षुविकारोंमें फाणित त्याज्य है ॥ १७ ॥ १८ ॥ संयोगविरुद्धानि । मत्स्यमानूपममं च दुग्धयुक्तं विवर्जयेत् । कपोतं पपस्नेभर्जितं परिवर्जयेत ॥ १९ ॥ मत्स्यानक्षुविकारेण तथाक्षौद्रेण वर्जयेत् । सक्तून्मांसपयोयुक्तानुष्णैर्दधिविवर्जयेत् ॥ २० ॥ उष्णं नभांबुना क्षौद्रं पायसं कृशरान्वितम् ॥२१॥ दशाहमुषितं सर्पिः कांस्ये मधुघृतं समम । कृतान्नं च कषायं च पुनरुष्णीकृतं त्यजेत् ॥ २२ ॥ एकत्र बहुमांसानि विरुध्यंते परस्परम् । मधुसर्पिर्वमा तैलं पानीयं वा पयस्तथा ॥ २३ ॥ मत्स्य और जलमें होनेवाले जानवरोंके मांस को दूध के साथ सेवन नहीं करना चाहिये। कबूतरके मांसको सरमोंक तेल के साथ, मच्छियों को शहद और क्षुविकारोंक साथ तथा सक्तुम्रोको दूधके साथ सेवन न करे । मांसको ठण्डे दहीसे सेवन न करे । गरम जल तथा आकाशके जल के साथ शहद और खिचड़ी के साथ दूध सेवन नहीं करना चाहिये । कांसीके बत्तनमें दश दिन रक्खा हुम्रा घृत तथा शहदके बराबर भी मिलाके नहीं खाना चाहिये । पकाया हुआ पत्र और काथ फिर गरम करके नहीं खाना चाहिये । बहुत मांस इकट्ठे करके नहीं खाना चाहिये । शहद, घी, चरबी और तेल, पानी और दूधके साथ नहीं खाने चाहिये || १९ - २३ ॥ भेषजसंकेतः । लवणं सैंधवं प्रोक्तं चन्दनं रक्तचन्दनम् । चूर्ण लेहा सवस्नेहाः साध्या धवलचन्दने ॥ २४ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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