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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (३२७ ) नवनीतवर्गः १४. -*म्रक्षणं सर्ज हैयंगवीनं नवनीतकम् । नवनीतं हितं गव्यं वृष्यं वर्णबलानिकृत् । संग्राहि वातपित्तामुक्क्षयार्शोदितकासहृत् ॥१॥ तद्धित बालके वृद्ध विशेषादमृतं शिशोः। नवनीतं महिष्यास्तु वातश्लेष्मकरं गुरु ॥२॥ दाहपित्तश्रमहरं मेदःशुकविवर्द्धनम् । दुग्धोत्थं नवनीतं तु चक्षुष्यं रक्तपित्तनुत् ॥३॥ वृष्यं बल्यमतिस्निग्धं मधुरं ग्राहि शीतलम् । नवनीतं तु सद्यस्कं स्वादु ग्राहि हिमं लघु ॥ ४॥ मेध्यं किंचित्कषायाम्लमीषत्तकांशसंक्रमात् । सक्षारकटुकाम्लत्वाच्छयरी कुष्ठकारकम् ॥ ५॥ श्लेष्मलं गुरु मेदस्यं नवनीतं चिरन्तनम् ॥६॥ ___ इति नननीतवर्गः। गायका मक्खन-हितकारी, वीर्यवर्धक, वर्ण, बल, अग्नि इनको अढाने. वाला, ग्राही तथा वात, पित्त, रक्तविकार, क्षय, अर्श, अदितवात (लकवा), खांसी इनको नष्ट करने वाला है। मक्खन-चालक वृद्ध सबके लिये हितकारी है। विशेष करके बच्चोंको अमृत समान है। भैंसका मक्खन-वातकफकारक, भारी, दाह, पित्त और श्रमको हरनेवाना, मेद और वीर्यको पढाने वाला होता tranam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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