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________________ ( ३१२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । मृगीदुग्धम् । मृगीणां जांगलोत्थानामजाक्षीरगुणं पयः ॥ १६॥ जङ्गलकी हरनियोंका दूध भी बकरी के दूध के समान गुणवाला है ॥१६॥ मेषीणाम् । आविकं लवणं स्वादु स्निग्धोष्णं चाश्मरिप्रणुत् । अहृद्यं तर्पणं वृष्यं शुक्रपित्तकफप्रदम् ॥ १७ ॥ गुरुकासेऽनिलोद्भूते केवले चानिले वरम् । भेड का दूध-ळवणरत युक्त, स्वादु, स्निग्ध, उष्ण, पथरीको तोडने . वाना, हृदयको अप्रिय, तृप्तिकारक, वृष्य, शुक्र, पित्त और ककको बढा. नेवाळा, भारी तथा वातजनित खांसी में पौर केरल वातमें हितकारी है॥ १७ ॥ अश्वीदुग्धम् । रूझोष्णं वडवाक्षीरं बल्यं शोषानिलापहम् ॥१८॥ अम्लं पटु लघु स्वादु सर्वमैकश६ तथा । वोडीका दूध-कक्ष, गरम, बलकारक, शोष तथा वायुको नष्ट करने पाला, अम्ल, लक्षणरसवाला, हलका, स्वादु है । और सब एक खुरवाले पशुओं का दूध इस के समान गुणों वाला होता है ॥ १८ ॥ उष्ट्रीदुग्धम् । ष्ट्रीदुग्धं लघु स्वादु लवणं दीपनं तथा ॥ १९॥ कृमिकुष्ठकफानाहशोथोदरहरं सरम् । ऊंटनीका दूध-लघु, स्वाद, लवगरसयुक्त, दीपन, दस्तावर तथा कृमि, कुष्ठ, कफ, आना, शोथ और उदररोगको हरता है ।। १९ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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