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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ( ३११ ) एक से दूसरा यथोत्तर भारी है। जैसी वस्तुको गाय खाती है उसके प्रतु सार ही उसका दूध स्निग्ध होता है ॥ ११ ॥ आहाराविशेषम् । स्वल्पान्नभक्षणाज्जातं क्षीरं गुरु कफप्रदम् । तत्तु बल्यं परं वृष्यं स्वस्थानां गुणदायकम् ॥ १२ ॥ पलालतृणकार्पासबीजजातं गुणैर्हितम् । थोडा अन्न खानेवाली गायका दूध--भारी, कफवर्द्धक, बलकारक, aterers और स्वस्थ मनुष्योंके लिये हितकारी है । जो गायें पलालतृण, कपास के बीज ( विनौले आदि) भक्षण करती हैं, उनका दूध अत्यन्त हितकारी है ॥ १२ ॥ माहिषम् । माहिषं मधुरं गव्यात्स्निग्धं शुक्रकरं गुरु ॥ १३ ॥ निद्राकरमभिष्यंदि क्षुधाधिककरं हिमम् । भैंसका दूध-- मधुर, गायसे अधिक स्निग्ध, वीर्यवर्धक, भारी, निद्राकारक, अभिष्यन्दि, भूखको अधिक लगानेवाले और शीतल है ॥ १३ ॥ " छागम् । छागं कषायं मधुरं शीतं ग्राहि तथा लघु ॥ १४ ॥ रक्तपित्तातिसारघ्नं क्षयका सज्वरापहम् । अजाना मल्पकायत्वात्कटुतिक्तनिषेवणात् ॥ १५ ॥ स्तोकांबुपानाद्वयायामात्सर्वरोगापहं पयः । बकरीका दूध - कसैला, मधुर, शीतल, ग्राही, इलका और रक्तपित्त, अतिसार, क्षय, कास और उबरको इरनेवाला है। बकरीका छोटा शरीर होनेसे कटु , तिक्त पदार्थोंके सेवन करने से, पानी थोडा पीने से और प्रत्यन्त व्यायाम करनेसे उसका दूध सब Ako! Shrutayanam रोगोको नष्ट करता है ॥ १४ ॥ १५ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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