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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (३०१) वाप्यं वारि यदि क्षारं पित्तकृत्कफवातहत् । तदेव मिष्टं कफकद्वातपित्तहरं भवेत् ॥ १७ ॥ पत्थर और ईंटोसे बने हुए पौंडियोंवाले बहुत बडे कुएँको वापी (बावली) कहते हैं। वापीका जल यदि क्षार हो तो पित्तकारक और कफवातनाशक होता है। और यदि मधुर हो तो कफकारक और वात तथा पित्तको हरनेवाला होता है ॥ ४६॥ ४ ॥ कौपम् । भूमौ खातोल्पविस्तारो गंभीरो मण्डलाकृतिः। बद्धोऽबद्धः स कूपः स्यात्तदंभः कोपमुच्यते ॥४८॥ . कौपं पयो यदि स्वादु त्रिदोषघ्न हितं लघु । तत्क्षारं कफवातघ्नं दीपनं पित्तकृत्परम् ॥ १९ ॥ पृथ्वीमें अल्प विस्तारवाला, अत्यन्त गहरा तथा गोल आकारका खोंदा हुमा गढ़ा कूप ( कुमाँ) कहनाता है। कुएँका जन यदि मधुर हो तो त्रिदोषनाशक, हितकारक तथा हलका है। यदि चार हो तो कफ वातको नष्ट करनेवाला, दीपन और अत्यन्त पित्तकारक है ॥ १८ ॥ ४९ ॥ चौंड्यम् । शिलाकीर्ण स्वयं श्वनं नीलांजनसमोदकम् । लतावितानसंछन्नं चौंड्यमित्यभिधीयते ॥ ५० ॥ अश्मादिभिरबद्धं यत्तच्चौंड्यमिति वापरे । तत्रत्यमुदकं चौंडयं मुनिभिस्तदुदाहृतम् ॥५१॥ चौंड्यं वह्निकरं नीरं रूक्षं कमहरं लघु । मधुरं पित्तनुद्रुच्यं पाचनं विशदं स्मृतम् ।। ५२॥ शिलानोसे ढका हुआ स्वयं श्वेत, नील अअनके समान जलबाला तथा नवाके ममहोसे ढका हुआ बोगदा हो उसको चौंडय कहते हैं।
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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