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________________ (२९३) हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। वारिवर्गः १०. पानीयं सलिलं नीरं कीलालं जलमंबु च । आपो वार्वारिकं तोयं पयः पाथस्तथोदकम् ॥१॥ जीवनं वनमभोर्णोऽमृतं घनरसोऽपि च ॥२॥ पानीयं श्रमनाशनं क्लमहरं मूर्छापिपासायह तंद्राछर्दिविबंधहदलकां निद्राहरं तर्पणम् हृद्यं गुप्तरसं ह्यजीर्णशमकं नित्यं हितं शीतलं लघ्वच्छं रसकारणानिगदितं पीयूषवज्जीवनम्॥३॥ तद्भेदाः। पानीयं मुनिभिः प्रोक्तं दिव्यं भोममिति द्विधा ॥४॥ दिव्यं चतुर्विधं प्रोतं धाराज करकाभवम् । तौषारं च तथा हैमं तेषु धारं गुणाधिकम् ॥५॥ पानीय, सलिन, नीर, श्रीलाल, जल, अम्बु, आप, पार, वारि, तोय, पय, पाथ, उदक, जीवन, वन, अम्भ,पर्ण, अमृत और धनरस यह जल के नाम हैं। इसे फारसीमें प्राप तथा अंग्रेजी में water कहते हैं। जल-परिश्रमको नष्ट करनेवाला, ग्लानि को हरनेवाना, मूर्श तथा प्यासको दूर करनेवाला, बलकारक, निद्राको हरनेवाना, तृप्तिकारक, हृदयको प्रिय, गुप्तरसवाला, अजीर्णको शमन करनेवाला, नित्य हितकारी, शीतल, हलका, स्वच्छ, अमृत के समान जीवन देनेवाला और चन्द्रा, वमन और विवन्धको हरने वाला है। जल दिव्य और भौम इन भेदोंसे मुनियोंने दो प्रकारका कहा है। दिव्य जल-धाराज, करकाभव, तोषार और हैम इन भेदोले चार प्रका Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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