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________________ हरातक्यादानघण्टुः भा. टा.। (५५) रसे पाके च मधुरं कषायं शीतलं गुरु ॥ १२ ॥ कफपित्तास्त्रजिद् ग्राहि वातलं च प्रकीर्तितम् । सेंबलके फूलोंका शाक घी और सेंधेनमकसे सिद्ध किया जाने पर स्त्रियोंके दुःसाध्य प्रदरको भी नाश करता है। सेंबनके फूल-रस पौर पाकमें मधुर, कषाय, शीतल, भारी, ग्राही, वातकारक और कफ, पित्त तथा रक्तको जीतनेवाले हैं ॥ ५१ ॥ ५२ ॥ फलशाकं कूष्मांडम् । कूष्मांडं स्यात्पुष्पफलं पीतपुष्पं बृहत्फलम् ॥५३॥ कूष्मांडं बृहणं वृष्यं गुरु पित्तास्रवारनुत ।। बालं पित्तापहं शी मध्यमं कफकारकम् ॥ ५४॥ वृद्धं नातिहिमं स्वादु सक्षारं दीपनं लघु । वस्तिशुद्धिकरं चेतोरोगहृत्सर्वदोषजित् ॥५५॥ कूष्माण्ड, पुष्पफल, पीतपुष्प और बृहत्फल यह कुम्भडेके नाम हैं। इसे अंग्रेजी में Pumpkin कहते हैं। पेठा-शरीरको पुष्ट करने वाला, वीर्यवर्द्धक, भारी, पित्त, रक्त और वयुको जीतने वाला होता है । कच्चा पेठा-पित्तनाशक और शीतल होता है। मनासाका पेठा-कफकारक होता है । पका हुया पेठा-अत्यन्तशीतल नहीं होता, मधुर, क्षारयुक्त, दीपन, हल्का, बस्तिको शुद्ध करनेवाला, मनके रोगोंको हरनेवाला और सब दोषों को जीतनेवाला होता कूष्मांडी। कूष्मांडी तु भृशं लम्धी कारुरपि कीर्तिता। कारुहिणी शीता रक्तपित्तहरी गुरुः ॥५६॥ पक्का तिक्तानिजननी सक्षारा कफवातनुत् । कूष्माण्डी (कद्दू) और कलि ये को जाम हैं। इसको काशी
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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