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________________ (२७८) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । पुष्पशाकम् अगस्तिकम् । अगस्तिकुमुमं शीतं चातुर्थिकनिवारणम् ॥४७॥ नक्तांध्यनाशनं तिक्तं कषायं कटुपाकि च । पीनसश्लेष्मपित्तघ्नं वातघ्नं मुनिभिर्मतम् ॥ १८॥ अगस्त्यके फूल-शीतल, चातुर्थिक वरनाशक, नक्ताध्यके दूर करनेवाले, तिक्त, कषाय, कटुपाकी तथा पीनल, कफ पित्त पौर वातको हरनेवाले हैं । ४७॥ १८ ॥ कदली। कदल्याः कुसुमं स्निग्धं मधुरं तुवरं गुरु । वातपित्तहरं शीतं रक्तपित्तक्षयप्रणुत् ॥ ४९॥ कदलीके फूल-स्निग्ध, मधुर, कसैले, भारी, वातपित्तनाशक, शीतन रक्त, पित्त और क्षयको दूर करनेवाले होते हैं ।। ४९ ॥ · शिशु। · शिग्रुपुष्पं तु कटुकंतीक्ष्णोष्णं स्नायुशोथकृत् । कृमिहत्कफवातघ्नं विद्रधिप्लीहगुल्मजित ॥५०॥ मधुशियोस्त्वक्षिहितं रक्तपित्तप्रसादनम् । लोहांजनेके फूल- कटु, तीक्ष्ण, उग्णा, नाडियोंमें शोथकारक, कृमिनाशक, कफवातनाशक तथा विद्रधि, प्लीहा और गुल्मको नाश करते हैं। मीठा सोहांजना नेत्रोंके लिये हितकारी, रक्त और पिनको प्रसन्न करने वाला है ॥५०॥ शाल्मली। शाल्मलीपुष्पशाकं तु घृतसैंधवसाधितम् ॥५१॥ प्रदरं नाशयत्येव दुःसाध्यं च न संशयः ।
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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