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________________ भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । हिलमोचका । ब्रह्मी शंखदराचारी ब्राह्मी च हिलमोचिका ॥ २८ ॥ शोथं कुष्ठं कफ पित्तं हरते हिलमोचिका । (२७४) ब्रह्मी, शंखदरा, आचारी, ब्राह्मी और हिलमोचिका यह हुलहुल के नाम हैं। हुलहु-शोथ, कुष्ठ, कफ और पित्तको हरनेवाली है ॥ २८ ॥ शितिवारः । शितिवारः शितिवरः स्वस्तिकः सुनिषण्णकः २९ ॥ श्री वीरकः सूचीपत्रः पर्णकः कुक्कुटः शिखी । चांगेरीदृशः पत्रैश्चतुर्दल इतीरितः ॥ ३० ॥ शाको जलान्विते देशे चतुष्पत्रीति चोच्यते । सुनिषण्णो हिमो ग्राहि मोहदोषत्रयापहा ॥ ३१ ॥ अविदाही लघुः स्वादुः कषायो रूक्षदीपनः । वृष्यो रुच्यो ज्वरश्वासमेहकुष्ठभ्रमप्रणुत ॥ ३२ ॥ शितिवार, शितिवर, स्वस्तिक, तुनिषण्याच, श्रीवीरक, सूचीपत्र, वर्णक, कुक्कुट और शिखी यह शितिवारके नाम हैं। इसके चांगेरीके समान चार पत्र होते हैं । इसको चौपतिया और शिरियारी भी कहते हैं। यह जनवाजे स्थान में होता 11 सुषिक (चौरसिया) शीतळ, ग्रादी, मोह और विशेषको हरनेबाला, अविदाही, हलका, मधुर, कषाय, रूक्ष, दीपन, वृष्य, रुचिकारक तथा ज्वर, श्वास, प्रमेह, कुष्ठ और भ्रमको दूर करता है ।। २९-३२ ॥ मूलकम् पांचनं लघुरुच्योष्णं पत्रं मूलकजं नवम् । स्नेहसिद्धं त्रिदोषघ्नमसिद्धं कफपित्तकृत् ॥ ३३ ॥ मूली के नरम पत्र - पाचन, हलके, रुचिकारी और उष्य होते हैं । यदि
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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