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________________ (२७२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा.].। पटुशाकः। पटुशाकस्तु नाडीको नाडीशाकश्च स स्मृतः ॥१८॥ नाडीको रक्तपित्तघ्नो विष्टंभी वातकोपनः। षटुशाक, नाडीक और नाडीशाक यह पटुशाकके नाम हैं। पटुशाकरक्तपित्तनाशक, विष्टम्भी और वातके कोपको करनेवाला है ॥ १८ ॥ कलंबी। कलंबी शतपर्वा च कथ्यते तद्णा अथ ॥ १९॥ कलंबी शुक्रदा प्रोक्ता मधुरा स्तन्यकारिणी। कलंबी, शतपर्वा यह कलमी शाकके नाम हैं । कलंबी-वीर्यवर्द्धक मधुर और स्तन्यकारक है ॥ १९ ॥ लोनी (णी ) बृहल्लोनी च। लोणा लोणी च कथिता बृहल्लोणीतुघोटिका॥२०॥ लोणी रूक्षा स्मृता गुर्वी वातश्लेष्महरी पटुः । अर्शोघ्नीदीपनीचाम्लामन्दाग्निविषनाशिनी ॥२१॥ घोटिकाम्ला सरा चोष्णा वातकृत्कफपित्तहत । वाग्दोषत्रणगुल्मघ्नी श्वासकासप्रमेहनुत् ॥ २२ ॥ शोथे लोचनरोगे च हिता तज्ज्ञैरुदाहृता । लोणा और लोणी यह नोनियेके तथा बृहल्लोणी और घोटिका यह बडे नोनियेके नाम हैं । नोनिया-रून, भारी, धातकफनाशक, खारी, अर्शन, दीपनी, अम्ल, मंदाग्नि तथा विषनाशक है । घोटिका-अम्ल, दस्तावर, उष्ण, वातकारक, कफपित्तनाशक तथा वाणि के दोष, गुरम, वा, श्वास, कास, प्रमेह, शोथ को मोर नेत्ररोगको दूर करनेवाली है ॥२०-२१ ॥ चांगेरी। चांगेरी चुकिका दंतशठांबष्ठाम्ललोणिका ॥२३॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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