SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २५४) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । बोहयः कथिता पाके मधुरा वीर्य्यतो हिताः। अल्पाभिष्यंदिनोबद्धवर्चस्काः षष्टिकैःसमाः ॥२१॥ कृष्णवीहिर्वरस्तेषां तस्मादल्पगुणाः परे । वर्षा ऋतु में पकनेवाले, छडने में सफेद और देरमें पकनेवाले व्रीहि धान्य कहलाते हैं । कृष्णव्रीहि, पाटल', कुक्कुटांडक, शालामुखी, जतुमुख इत्यादि धान्य होते हैं, मुर्गे के अंडे के आकारवाले कुक्कुटांडक व्रीहि होते हैं। काले तुषोंवाला चावल कृष्णब्रीहि होता है। पाटके फूल जैसे रंग. बाले पाटल ब्रोहि होते हैं। जिसका शूक और तण्डुल काले हों उसे शालामुख कहते हैं। जिसके मुखका रंग लाखके सदृश हो उसे जतुमुख कहते हैं। ब्रीहि धान्य पाकमैं मधुर,वीर्य्यक, हितकर,अल्पाभिष्यन्दी, मलको बांधनेवाले और साठी के समान होते हैं। कृष्ण व्रीहि इनमें सबसे श्रेष्ठ है। दूसरे सब अल्प गुणवाले हैं ॥ १७-२१ ॥ पष्टिकम् । गर्भस्था एव ये पाकं यांति ते षष्टिका मताः॥२२॥ पष्टिकः शतपुष्पश्च प्रमोदकमुकुन्दको । महापष्टिक इत्याद्याः षष्टिकाः समुदाहृताः ॥२३॥ एतेऽपि त्रीहयः प्रोक्ता वीहिलक्षणदर्शनात् । षष्टिका मधुरा शीता लवको बर्चसः ॥२४॥ वातपित्तप्रशमनाः शालिभिः सहशा गुणः । पष्टिका प्रवरा तेषांलधी स्निग्धात्रिदोषजित् ॥२५॥ स्वाही मृद्वी पाहणी च बलदा घरहारिणी । रक्तशालिगुणस्तुत्यास्ततः स्वल्पगुणाः परे ॥२६॥ जो गर्भस्थ ही पक जाते हैं उन्हें साठी धान्य कहते हैं । षष्टिक, शत. पुष्प,प्रमोदक,मुकुन्दक और महापष्टिक इत्यादि साठीके भेद हैं। बोहिके
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy