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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (२५१) जाते हैं। सठ्ठी आदि व्रीहि करे जाते हैं। यव आदि शूक धान्य कहे जाते हैं। मूंग मटरमादि फलियोंसे निकलनेवाले द्विदल शिवि धान्य कहे जाते हैं। और कंगुनी आदि शुदधान्य पौर तृणधान्य कहे जाते हैं। जो चावल विना ही छडनेसे श्वेत हो उनको शालिधान्य कहते हैं ॥ १-३॥ . शालिः। रक्तशालिः स कलमः पांडुकः शकुनाहृतः । सुगंधकः कर्दमको महाशालिश्च दूषकः॥४॥ पुष्पांडकः पुंडरीकस्तथा महिषमस्तकः। दीर्घशूकः कांचनको हायनो लोध्रपुष्पकः ॥ ५॥ इत्यायाः शालयस्संति बहवो बहुदेशजाः ।। ग्रंथविस्तारभीतेस्ते समास्ता नात्र भाषिताः ॥६॥ शालिपान्योंकी अनेक जाति हैं जिनमें रक्तशालि, कलम, पांदुक, शकुनाहत, सुगंधक, कर्दमक, महाशालि, दूषक, पुष्पांडक, पुण्डरीक, पहिषपातक, दीर्घशूक, कांचन, हायन, लोध्रपुष्पक, आदि शालि धान्य कहे जाते हैं। चोडा वालमती आदि शालिधानों के अंतर्गत । शालिधा नोंकी अनेक देशोंमें उत्पन्न होनेसे अनेक प्रकारके जातियां होती हैं। जिनको ग्रंथके बहुत बढ जानेके भयसे यहां पर नहीं निखा ॥४-६ ॥ शालिधान्यगुणाः। । शालयो मधुराः स्निग्धा बल्या बद्धाल्पवर्चसः। कषाया लघवो रुच्याः स्वर्या वृष्याश्च बृहणाः ॥७॥ अल्पानिलकफाः शीताः पित्तना मूत्रलास्तथा । शालयोदग्धमृजाताः कषाया लघुपाकिनः ॥ ८॥ सृष्टमूत्रपुरीषाश्च रूक्षाः श्लेष्मापकर्षणाः। कैदारा वातपित्तघ्ना गुरकः कफशुकलाः ॥ ९ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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