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________________ ( २५० ) भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. । शुद्ध विषमें जितने दुर्गुण होते हैं वह शोधन करनेसे हीन पड जाते हैं और गुण रह जाते हैं । इसलिये विषोंको सब योगों में शोधन करके ही डालना चाहिये ॥ २०१-२०६ ॥ उपविषाणि । अक्षीरं स्नुहीक्षीरं लांगलीकरवीरकौ ॥ २०७ ॥ गुञ्जाहिनो धत्तरः सप्तोपविषजातयः ॥ २०८ ॥ एषां गुणास्तत्रतत्र द्रष्टव्याः । इति धातुवर्गः । आकका दूध, वोहरका दूध, लांगली कंद, कनेर, घुंघवी, अफीम और धतूरा यह खास उपविष कहे जाते हैं ।। २०७ ।। २०८ ।। इति श्रीवैवरत्न पं० - रामप्रसादात्मज विद्यालंकार -- शिवशर्म वैद्यकृत शिवप्रकाशिकाभाषायां हरीतक्यादिनिघण्टौ धातुवर्गः समाप्तः ॥ ७ ॥ धान्यवर्गः ८ . शालिधान्यं व्रीहिधान्यं शूकधान्यं तृतीयकम् । शिबीधान्यं क्षुद्रधान्यमित्युक्तं धान्यपंचकम् ॥१॥ शालयोरक्तशाल्याद्या व्रीहयः षष्टिकादयः । यवादिकं शुकधान्यं मुद्राद्यं शिंबिधान्यकम् ॥ २॥ कंग्वादिकं क्षुद्धवान्यं तृणधान्यं च तत्स्मृतम् । कण्डनेन विनाशुका हेमंताः शालयः स्मृताः ॥३॥ शालिधान्य, व्रीहिधान्य, शूकधन्य शिबीधान्य, चौर क्षुद्रधान्य यह धान्यकी पांच जातियाँ हैं । इनमें लाल नील शालि चावलादि शालिधान्य कहे
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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