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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१८१) मखाणम् । मखाणं पद्मबीजाभं पानीयफलमित्यपि । मखाणं पद्मबीजस्य गुणस्तुल्यं विनिर्दिशेत् ॥९॥ कमलगट्टे भून ले नेपर मखाणे हो जाते हैं । मखाण, पद्मवीमाभ पौर पानीयफल यह मखाणे के नाम हैं । मखाणेके कमगढेके समान शृंगाटकम् । शृंगाटकं जलफलं त्रिकोणफलमित्यपि। शृंगाटकं हिमं स्वादु गुरु वृष्यं कषायकम् ॥९॥ ग्राही शुक्रानिलश्लेष्मप्रदं दाहालपित्तनुत्। उक्त कुमुदबीजं तु बुधैः कैरविणीफलम् ॥ ९२ ॥ . भंगाटक, जलफल और त्रिकोणफल यह सिंघाडेके नाम हैं इसको हिन्दीमें सिंघाडा, फारसीमें सुरक्षान् और अंग्रेजीमें Water Caltrap कहते हैं। सिंघाड़ा-शीतल, सादु, भारी, वीर्यवर्धक, कलैला, ग्राही तथा शुक्र, वायु, और कफको बढ़ाता है । तथा दाह और रक्तपित्त को नष्ट करता है॥ ९१ ॥ ९२ ॥ कुमुदवीजम् । भवेत्कुमुद्रतीबीजं स्वादु रूक्ष हिमं गुरु । कुमुद्रती के बीज-स्वादिष्ट, रूक्ष, शीतल और भारी होते हैं । मधूक, जलमधूकम् । मधूको गुडपुष्पः स्थान्मधुपुष्पो मधुस्रवः ॥१३॥ वानप्रस्थो मधुष्ठीलो जलजोऽत्र मधूलकः। मधूकपुष्पं मधुरं शीतलं गुरु बृहणम् ॥ ९४ ॥ बलशुक्रकरं प्रोक्तं वातपित्तविनाशनम् ।
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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