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________________ भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. राजादनः । राजादनः फलाध्यक्षो राजन्या क्षीरिकापि च । क्षीरिकाया फलं वृष्यं बल्यं स्निग्धं हिमं गुरु ॥ ८५ ॥ तृष्णामूर्च्छामदभ्रांतिक्षयदोषत्रयास्रजित् । ( १८० ) राजादन, फलाध्यक्ष, राजन्या और क्षीरिका यह खिरनीके नाम हैं । इसको अंग्रेजी में Obtuse Leaved Mimusops कहते हैं । खिरनीका फल - वीर्यवर्धक, बलकारक, स्निग्ध, शीतल, भारी और ध्यास, मूर्च्छा, मद, भ्रांति, क्षय, विदोष तथा रक्तविकारको दूर करता है ॥ ८५ ॥ विकंकतम् । विकंकतः मुवावृक्षो ग्रंथिलः स्वादुकंटकः ॥ ८६ ॥ स एव यज्ञवृक्षश्च कंटकी व्याघ्रपादपि । विकंकतफलं पक्वं मधुरं सर्वदोषजित् ॥ ८७ ॥ विकंकत, सुवावृक्ष, ग्रंथिल, स्वादुकण्टक, यज्ञवृक्ष, कण्टकी और कंडवाह, व्याघ्रपाद यह कंटाईके नाम हैं। कंटाईका पका हुआ फळ- मधुर और त्रिदोषनाशक है ॥ ८६ ॥ ८७ ॥ पद्मवीजम् । बीजं तु पद्माक्षं गालोढचं पद्मकर्कटी । पद्मबीजं हिमं स्वादु कषायं तिक्तकं गुरु ॥ ८८ ॥ विष्टंभि वृष्यं रूक्षं च गर्भस्थापनकं परम् । कफवातहरं बल्यं ग्राहि पित्तास्रदाहनुत् ॥ ८९ ॥ पद्मवीज, पद्माक्ष, गालोढ्य और पद्मकर्कटी यह कमल गट्टेके नाम हैं। कमलगट्टा - शीतल, स्वादिष्ट, कसैला, तिक्त, भारी, विष्टम्भकारक, वीर्यवर्धक, रूक्ष, गर्भको स्थापन करनेवाला, कफ और वातको हरनेवाला, बलकारक, [ग्राही और पित्तरक्तविकार तथा दाहको दूर करनेवाला ८८ ॥ ८९ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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