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________________ ( १२ ) प्रस्तावना | होने के कारण वह भी सर्व साधारणको सुलभ न था; अंतः यह सबके लिये सुलभ हो इस इच्छा से हमारे यहां तृतीयावृत्ति प्रकाशित मूल पुस्तकका पटियाला राजवैद्य वैद्यरत्न पं० रामप्रसादात्मज विद्यालङ्कार शिवशर्म वैद्यशास्त्रि द्वारा औषधोंके अंग्रेजी नामोंसहित शिवप्रकाशिका नमक सरल हिन्दी भाषाटीका बनवाकर प्रकाशित किया है। उक्त पुस्तकमें मांसवग और कृतान्नवग न होनेके कारण हमारे यहां प्रकाशित स्व० लालाशालग्राम वैश्यकृत भाषानुवादसहित भावप्रकाशसे उद्धृतकर उक्त दोनों वर्गों को भी इसमें जोड दिया है । और वर्तमान कालमें फारसी नामोंसे व्यवहृत होनेवाली अनेक औषधों के संस्कृत नाव तथा अनेक अप्रसिद्ध संस्कृतनामवाली कौपधोंडे प्रचलित भाषानाम प्रदर्शित करनेवाला परिशिष्ट भी जोड दिया है, इससे इसकी उपयोगिता अत्यधिक बढ गयी है । इस प्रकारका यह संस्करण यद्यपि यथासंभव सुविधायुक्त और भली भांति परिशोधित करके ही छापा गया है तथापि प्रथम प्रयत्न और मनुष्यस्वभाव के कारण यदि कोई त्रुटि प्रतीत हो तो उसे सहृदय महोदय सदय हृदय होकर अवश्य क्षमा करें। ऐसी विनीत प्रार्थना करते हुए आशा करते हैं कि आरोग्यको सबसे अधिक लाभ समझनेवाले नीतिज्ञ पुरुष तथा आयुर्वेद विद्याप्रेमी इसका संग्रह कर हमारे परिश्रमको सफल करते हुए इससे लाभ उठावेंगे। राजश्रीकृष्णदास, अध्यक्ष- "श्रीवेङ्कटेश्वर" स्टीम्-प्रेस, Aho! Shrutgyanam बम्बई.
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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