SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना। अथर्ववेदमें देव परापूजन, प्रायश्चित उपवास आदिके अनन्तर देहको पारोग्य रखने के लिये चिपसाका उपदेश किया है। द्रव्य, गुण, कर्मके विचार करनेसे आरोग्य लाभ होता है। किस द्रव्यमें क्या गुण है उसकी इतिकर्तव्यता किस प्रकारसे है इतना जान लेना सभीको आवश्यक है । वात, पित्त, कफ अथवा इनके संयोगसे हुई प्रकृति के अनुकूल पदार्थोके सेवन करनेसे देहमें रोग नहीं हो सकते । कदाचित विरुद्ध पदार्थों के सेवनसे पातादि दोषोंमें वैषम्य हो जाने के कारण रोग हो भी जावे तो उनके कर्षण पंहणात्मक (दोषों के घटाने बढाने रूप ) सुचिकित्सासे शीघ्र नष्ट हो सकते हैं । यही सब विचार करके आयुर्वेदतत्त्वज्ञ भाव मिश्र ने अपने निर्मित भावप्रकाश में नाना प्रकार के अत्र, शाक, फल, मूल, जल, दही, दूध, शर्करा आदि नित्य के उपयोगी प्रायः सभी पदार्थो के गुण अवगुण कहे हैं। उसी भावप्रकाशमें संग्रह का यह भावप्रकाशनिघण्टु बनाया गया है। इसीका दूसरा नाम हरीतस्यादिनिघण्टु है । इसमें ग्रन्थकार (भाव मिश्र ) ने दीपान्तर वचा (चोव चीनी) आदि वर्तमान समयमें प्रचलित कतिपय नवीन द्रव्यों के नाम गुण लिखकर अपने पूर्ववर्ती निघण्टुकारोंले विशेषता दिखाते हुए इसकी उपादेयताको और भी बढ़ा दिया है । यह ऐसा उत्तम निघण्टु बना है कि वैद्य तथा अन्य आयुर्वेदप्रेमी मनुष्योंने इसको अत्यन्त आदरसे पठन पाठन प्रादि कार्यमें ग्रहण किया है । इसके द्वारा देशवासियों का जो उपकार हुआ है इसके लिये उक्त ग्रंथकारके, लोग अत्यन्त उपकृत और ऋणी हैं। ऐसे परमोपयोगी-सर्वप्रियलर्वमान्य निघण्टुका यथार्थ भाषानुवाद न होने के कारण संस्कृतानभिज्ञ जन. साधारण इसके अनुपम लाभोंसे वश्चित थे । यद्यपि हमारे यहांके छपे हुए सविस्तृत सरल भाषाटीकासहित भावप्रकाशमें इस निघण्टुका भी मुविस्वत सरळभाषानुवाद पाचुका है तथापि समग्र ग्रंथका मूल्य अधिक Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy