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________________ ( १६८) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । तर्पणं बृहणं स्वादु मांसलं श्लेष्मलं भृशम् ॥२६॥ बल्यं शुक्रपदं हंति रक्तपित्तशतव्रणान् । आम तदेव विष्टंभि वातलं तुवरं गुरु ॥२७॥ दाहहृन्मधुरं बल्यं कफमेदोविवर्द्धनम् । पनस, कंटकिफल और अतिवृहत्फल यह पनसके नाम हैं। इसे हिन्दीमें कटहर अथवा कटहल कहते हैं। कटहरका पका हमा फलशीतल, स्निग्ध, पिन और वायुको घटानेवाला, बन तथा शुक्रको बढाने वाला और रक्तपित्त, क्षत और व्रणोंको दूर करता है। कच्चा कटहरविष्टम्भकारक, वातवर्धक, कसैला, भारी, दाहको हरनेवाला, मधुर पौरपत, कफ, मेद इनको बढानेवाला है ।। २५-२७ ॥ लकुचम् । लकुचः क्षुद्रपनसो लिकुचो डहुरित्यपि ॥२८ ॥ आम लकुचमुष्णं च गुरु विष्टंभकृत्तथा। मधुरं च तथाम्लं च दोषत्रयविरक्तकृत् ॥ २९॥ शुक्रानिनाशनं वापि नेत्रयोरहितं स्मृतम् । सुपक्वं तनु मधुरमम्लं चानिलपित्तहत् ॥३०॥ कफवह्निकरं रुच्यं वृष्यं विष्टंभकं च तत् । लकुच, क्षुद्रपनस, लिकुच और डहु यह बड़हलके नाम हैं। बड़हलखट्टा, त्रिदोष और रक्तविकारोंको उत्पन्न करनेवाला, शुक्र पौर अग्निको भष्ट करनेवाला और नेत्रोंको हानि करनेवाला है। पका बड़हल-मधुर, सहा, वात तथा पिनको हरनेवाला, कफ और अग्निको बढानेवाला, रुचिकारक वीर्यवर्धक भौर विष्टम्भ करनेवाला है । २८-३०॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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