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________________ ( १६०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। सिंदूरी। सिंदूरी रक्तबीना च रक्तपुष्पा सुकोमला ॥ ७ ॥ सिंदूरी विषपित्तास्रतृष्णावांतिहरी हिमा। -सिन्दूरी. रकबीना, रक्तपुष्पा और कोमला यह सिंदरीरे नाम हैं इसे हिन्दीमें सिंदूरिया प्रथया जाफर और अंग्रेजी में Armalto कहते हैं। सिन्दूरी-शीतल पौर विष, पित्त, रक्तविकार प्यास पौर वमनको र करनेवाली है ॥ ५७ ॥ अगस्त्यः । अगस्त्याह्वो वंगेसेनो मुनिपुष्पो मुनिद्रुमः ॥१८॥ अगस्त्यः पित्तकफजिचातुर्थिकहरो हिमः। सूक्षो वातकरस्तितः प्रतिश्यायनिवारणः ।। ५९॥ भगस्त्य, घनसेन, मु ने पुष्प और मुनिद्रुम यह अगस्यके नाम हैं इसे हिन्दी में अगस्त्य अथाहथिया और अंग्रेजी में Large Flowered Agita कहते हैं। अगस्त्य -पित्त तथा काको जीतने वाला, चातुर्थिक परको हरनेवाला शीतल रूक्ष, वातकर, तिक्त और प्रतिश्यायको निवारण करता है।५८ ।। ५९ ॥ तुलसी शुक्ला कृष्णा छ। तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी । अपेतराक्षसी गौरी शूलधनी देवदुंदुभिः ॥ ६॥ तुलसी कटुका तिक्ता हृद्योष्णा दाह पित्तकृत् । दीपनी कुष्ठकृच्छास्त्रपार्श्वरुक्कफवातजित् ॥ ६ ॥ शुक्ला कृष्णा च तुलसी गुणैस्तुल्या प्रकीर्तिता । वनसी, सुरसा, ग्राम्या, मुलभा, बहुमजरी, अपेतराक्षप्ती, गौरी..
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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