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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१५९) मुचुकुन्द-शिरकी पीडा, पिस, रुधिरविकार तथा विषको नष्ट करता तिलक । तिलकः क्षुरकः श्रीमान् पुरुषश्छत्रपुष्पकः । तिलकः कटुकः पाके रसे चोष्णो रसायनः ॥५४॥ कफकुष्ठकमीन्वस्तिमुखदन्तगदान हरेत् । तिलक, भुरक, श्रीमान और छत्रपुष्प यह तिलकके नाम हैं। तिलक-पाक और रसमें कटु,उष्ण, रसायन और कफ, कुष्ठ, कृमि, वस्तिरोग, सुखरोग तथा दांतोंके रोगको हरता है ॥ ५४ ॥ बंधूकः । बंधूको बंधुजीवश्च रक्तो माध्याह्रिको मतः ॥५५॥ बंधूकः कफदू ग्राही वातपित्तहरो लघुः । बन्धक, बन्धुजीव, रक्त और माध्याडिक यह बम्धूकके नाम हैं। बन्धूक-कफकारक, ग्राही, पित्त-वातनाशक और लघु है ॥ ५५ ॥ ओण्डपुष्पम् । ओण्डपुष्पं जपा चाथ त्रिसंध्या सारुणा मता ५६ जपा संग्राहिणी केश्या त्रिसंध्या कफवातहत । बोण्डपुष्प, जपा यह जपाके नाम हैं। लालपुष्पावाली जपाको त्रिसन्ध्या कहते हैं। जपाको हिन्दीमें गुडार और अंग्रेजी में Shoe flower कहते हैं। अपा-पाही और केशोंको उत्तम करनेवाली है। विसत्य (लालपुषचानी जपा) कफवातको नष्ट करती है । ५६ ॥ anam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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