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________________ ( १३२ ) भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. । कृष्णसारिखा । कृष्णा तु सारिवा श्यामा गोपीगोपवधूश्व सा२४२ चवला सारिवा गोपी गोपकन्या च शारदी | स्फोटाश्यामागोपवलीलतास्फोताचचंदना ॥ २४३॥ कृष्णसारिवा, श्यामा, गोपी, गोपवधू और कृष्णा यह काले शारिवाके नाम हैं। धरना, सारिश, गोपी, गोपकन्या, शारदी, स्फोटा, श्यामा, गोपवल्ली, लता, स्फोता और चन्दना यह श्वेतशारिवाके नाम हैं । इसको हिन्दी में पनन्तमूल, कहते हैं । शिमला प्रान्त में दुधलीकी बेल कहते हैं २४२ ॥ २४३ ॥ सारिवा । सारिवायुगलं स्वादु स्निग्धं शुक्रकरं गुरु । अग्निमांद्यारुचिश्वासकासामविषनाशनम् २४४ ॥ दोषत्रयाखप्रदरज्वरातीसारनाशनम् । दोनों प्रकारका सारिवा स्वादु, स्निग्ध, वीर्यवर्धक, भारी है तथा अग्निमांद्य, अरुचि, श्वास, कास, आम, विष, त्रिदोष, रक्त, प्रदर, ज्वर और अतिसारको नष्ट करता है ॥ २४४ ॥ भृंगराजः । भृंगराजो भृंगरजो मार्कवो भृंग एव च ॥ २४९ ॥ अंगारकः केशराजो भृङ्गारः केशरञ्जनः । भृङ्गारः कटुकस्तिको रूक्षोष्णः कफवातनुत् ॥ २४६ ॥ केश्यस्त्वच्यः कृमिश्वासकासशोथामपांडुनुत् । दंत्यो रसायनो बल्यः कुष्ठनेत्रशिरोर्तिनुत् ॥ २४७॥ भृङ्गराज, भृंगराज, मार्कव, भृङ्ग, अंगारक, केशराज, भंगार और
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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