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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । ( १३ ) हरेन्महाबला कृच्छ्रं भवेद्वातानुलोमनी । हन्यादतिबला मेहं पयसा सितया समम् ॥ १४८ ॥ बला, वाटचालिका, वाट्या, वाटचालका, महाबला, पीतपुष्पा, सहदेवी यह बला और महाबलाके नाम हैं। बलाको अंग्रेजी में Hombeamep Side कहते हैं । प्रतिबला, रिष्यप्रोक्ता, कंकतिका यह अतिबला के नाम हैं । इसे अंग्रेजीमें Indian Mellow कहते हैं । गांगेरुकी, नागबला, झषा, ह्रस्वगवेधुका यह नागबला के नाम हैं। चारों वला - शीतल, मधुर, बलवर्धक, कांतिवर्धक, स्निग्ध, ग्राही पौर वात, रक्त, पित्त, रक्तविकार, क्षत इनको नष्ट करनेवाली हैं । बलाकी जड़की छालका चूर्ण दूध और शर्कराके साथ खाया हुआ मूत्रकृच्छ्रको दूर करता है इसमें संशय नहीं, दृष्टिसे देखा हुआ है। महाबला मुत्रकृच्छूको नष्ट करती है और वातनाशक है। अतिबला दूध और मिसरीके साथ खाई हुई प्रमेहको नाश करती है । १४४--१४८ ॥ लक्ष्मणा । पुत्रकाकाररक्ताल्पबिंदुभिर्लाञ्छिता सदा । लक्ष्मणा पुत्रजननी वस्तगन्धाकृतिर्भवेत् ॥ १४९ ॥ कथिता पुत्रदा वश्या लक्ष्मणा मुनिपुङ्गवैः । लक्ष्मणाका कन्द पुतलेके आकारवाला होता है, पत्र लाल और छोटी बूदोंसे लांछित होता है । इसकी गंध बकरे के सदृश होती है। लक्ष्मया और पुत्रजननी इसके संस्कृत नाम हैं। मुनि कहते हैं कि लक्ष्मणा श्रवश्य ही पुत्रको देती है । इसके अभाव में सफेद फूल की कटेनीकी जड़का प्रयोग करते हैं ।। १४९ ॥ स्वर्णवल्ली। स्वर्णवी रक्तफला काकायुः काकवल्लरी ॥ १५० ॥ स्वर्णवली शिरःपीडां त्रिदोषं हंति दुग्धदा । स्वर्णवल्ली, रक्तफल, काका, काकवल्लरी यह स्वर्णवल्ली के नाम हैं। Aho! Smrutgyanam ८
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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