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________________ भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । करंजो ह्रस्वकरंजः । करंजो नक्तमालश्च करजश्विर बिल्वकः ॥ १२० ॥ घृतपूर्णः करंजोऽन्यः प्रकीर्यः पूतिकोऽपि च । सचोक्तः पूतिकारंजः सोमवल्कश्च स स्मृतः १२५॥ करंजः कटुकस्तीक्ष्णो वीर्योष्णो योनिदोषहृत् । कुष्ठोदावर्त गुल्माशत्रण क्रिमिकफापहा ॥ १२२ ॥ तत्पन्नं कफवाताशःकृमिशोथहरं परम् । भेदनं कटुकं पाके वीर्योष्णं पित्तलं लघु ॥ १२३ ॥ तत्फलं कफवातघ्नं मेहाशःकृमिकुष्ठजित् । घृत पूर्णकरंजोऽपि करंजसदृशो गुणैः ॥ १२४ ॥ ( १०८ ) करंज, नक्तमाल, करज, विरबिल्वक यह करंजके नाम हैं । घृतपूर्ण, करंज, प्रकीर्य, पूतिक, पूतिकरंज और सोमवल्क, यह घियाकरंजके नाम हैं। इसे अंग्रेजीमें Smooth Leaved Pongamia कहते हैं । करंज- कटु, तीक्ष्णा, उष्णवीर्य, योनिरोगनाशक तथा कोढ़, उदावर्त, गुल्म, अर्श, व्रण, कृमि और कफके नाश करनेवाला है । इसके पत्ते, भेदनकर्ता हैं, पाक में कटु, उष्णवीर्य, पित्तकारक, हल्के तथा कफ, बात, अर्श, कृमि और शोथके हरनेवाले हैं। करंजका फल - कफ, वात, प्रमेह, अर्श, कृमि और कोटको नष्ट करता है । घृतपूर्ण करंजके भी करंजलदृश गुण हैं । १२०-१२४ ॥ तृतीयः करंजः । उदकीर्य्यस्तृतीयोऽन्यः षड्ग्रन्थ हस्तिवारुणी । कर्कटी वायसी चापि करंजी करभंजिका ॥ १२५॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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