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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१०७) सिंदुकः स्मृतिदस्तिक्तः कषायः कटुको लघुः।। केश्यो नेत्रहितो हंति शूलशोथाममारुतान्॥११६॥ कृमिकुष्ठारुचिश्लेष्मवणानीला हि तद्विधा । सिंदुवारदलं जन्तुवातश्लेष्महरं लघु ॥ ११७॥ सिंदुवार, श्वेतपुष्प, सिन्दुक, सिन्दुवारक, नीलपुष्पी, निर्गुण्डी, शेफाली, सुबहा यह संभालूके नाम हैं। इसे अंग्रेजीमें Five Leaved. Chus Tree कहते हैं। संभालू-स्मृतिदायक, तिक्त, कषाय, कटु, हलका, केश और नेत्रों को हितकर तथा शूल, शोथ, आम, बात, कृमि, कोद, अरुचि, कफ और व्रण इनको नष्ट करनेवाला है। नीले फलवाले संभालूके भी यही गुण हैं। इसके पत्ते कृमि, वात तथा कफ इनको हरनेवाले और हल्फे. हैं ॥ ११५-११७ ॥ कुटजः। कुटजः कुटिजः कौटो वत्सको गिरिमल्लिका । कालिंगश्चक्रशाखी च मल्लिकापुष्पइत्यपि ॥११८॥ इंद्रयवफलः प्रोक्तो वृष्यकः पांडुरद्रुमः । कुटजः कटुको रूक्षो दीपनस्तुवरो हिमः ॥ ११९ ॥ अोतिसारपित्तास्रकफतृष्णामकुष्ठजित् । कुटज, कुष्टिज, कौट, वत्सक, गिरिमल्लिका, कालिंग चक्रशाखी, मल्लिकापुष्प, इन्द्रयवफल वृण्यक, पाण्डुरद्रुम यह कुड़ाके नाम हैं। अंग्रेजी में इसे Ovalleaved Rose Bay कहते हैं। कुड़ा-कटु, रूक्ष, दीपन, कषाय, शीतल तथा अर्श, अतिसार, पित्त रक्तविकार, कफ. प्यास, प्राम और कोढको जीतनेवाली है। शिमन प्रान्तमें कोयड़ नामसे प्रसिद्ध ॥ ११८ ॥ ११९०१
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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