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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (९५) मुद्गपणी। मुद्गपर्णी काकपर्णी शूर्पपर्ण्यल्पिका सहा ॥ ५२ ॥ काकमुद्दा च सा प्रोक्ता तथा मार्जारगंधिका । मुद्गपर्णी हिमा रूक्षा तिक्ता स्वाद्वी च शुक्रला ५३ चक्षुष्या क्षतशोथनी ग्राहणी ज्वरदाहनुत् । दोषत्रयहरी लध्वी ग्रहण्योंतिसारजित् ।। ५४ ॥ मुद्रपर्णी, काकपर्णी, शूर्पपर्णी, अल्पिका, सहा, काकमुद्गा और मारिंगंधिका यह मुद्गपीके नाम हैं। मुद्रपर्णी-शीतल, कक्ष, तिक्त, वीर्यवर्धक, नेत्रोंको हितकर, त्रिदोष, नाशक, हलकी, ग्राही तथा ज्वर, दाह, अर्श और अतिसारको जीतती है।। ५२-५४॥ माषपर्णी। माषपर्णी सूर्यपर्णी कांबोजी हयपुच्छिका। पांडुलोमशपर्णी च कृष्णवृन्ता महासहा ॥ ५५॥ मषपर्णी हिमा तिक्ता रूक्षा शुक्रबलासकृत् । मधुरा पाहणी शोथवातपित्तज्वराजित् ॥५६॥ माषपर्णी, सूर्यपी, कांबोजी, हयपुच्छिका, पालोमशपर्णी, कुग्णवृन्ता, महासहा यह माषपीके नाम हैं। मापपर्णी-ठंढी, तिक्त, रूखी, वीर्य और कफको बढानेवाली, मधुर, आही, शोथ, वात, पित्त, ज्वर और रक्तविकारको हरनेवाली ॥५५॥५६॥ " जीवनीयगणः। अष्टवर्गः सयष्टीको जीवंती मुद्गपर्णिका । माषपर्णीगणोऽयं तु जीवनीय इति स्मृतः ॥१७॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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